सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७८
आनन्द मठ


देखी और भी कुछ लोग आगे आये। उन्हें आगे बढ़ते देख, कुछ और लोग आगे बढ़ते नजर आये। बड़ा शोर-गुल मच गया, उस समयतक जीवानन्द शत्रु के व्यूहमें घुस चुके थे। सन्तान सेना फिर उन्हें न देख सकी।

इधर समस्त रणक्षेत्रके सन्तानोंने देखा कि फिर बहुतसे लौटे आ रहे हैं। सबने सोचा कि शायद सन्तानोंकी जीत हो गयी। उन्होंने शत्रु को मार भगाया। यह देख, सारी सन्तान-सेना 'मार-मार' की आवाज करती हुई अंगरेजी फौजका पीछा करने लगी।

इधर अंगरेजी सेनामें भी बड़ा भारी गोलमाल मचा हुआ था। सिपाहियोंने युद्धकी चिन्ता छोड़, भागना शुरू कर दिया था और गोरे संगीन उठाये अपने अपने डरोंकी ओर दौड़े चले जा रहे थे। इधर-उधर नजर दौड़ाकर महेन्द्रने देखा कि टीलेके ऊपर बहुत सो सन्तान-सेना दिखाई दे रही है। उन्होंने और भी देखा कि वे नीचे उतरकर अंगरेजो फौजपर बड़ी बहादुरीके साथ हमला कर रहे हैं। उस समय उन्होंने सन्तानों को पुकार कर कहा- “सन्तानगण! देखो, शिखरपर प्रभु सत्यानन्द गोस्वामीकी ध्वजा फहराती हुई दिखाई दे रही है। आज स्वयं मुरारि, मधुकैटभारि, कंस के शिनाशकारी, रणमें अवतीर्ण हुए हैं आज लाखों सन्तान उस टीलेपर जमा हैं। बोलो-हरे मुरारे! हरे मुरारे! मुसलमानोंको जहां पाओ, मार गिराओ। आज एक लाख सन्तान टीलेपर आकर जमा हैं।"

उस समय 'हरे मुरारे' की भीषण ध्वनिसे सारा कानन प्रान्तर मथित होने लगा। सभी सन्तान 'मा भैः, मा भैः' का रव करते, ललित तालपर अस्त्रोंको झनकारते हुए सब जीवोंको विमोहित करने लगे। शाही पलटन पत्थरसे टकराई हुई निर्भरिणोकी तरह ठोकर खाकर भौंचकली हो रही, डर गयी और तितर बितर होने लगी। इसी समय पच्चीस सन्तानोंको सेना