१८–प्रेमाश्रम
ले° उपन्यास सम्राट् श्रीयुत प्रेमचन्दजी
जिन्होंने प्रेमचन्दजी की लेखनी का रसास्वादन किया है उनके लिये इसकी प्रशंसा करना व्यर्थ है पुस्तक क्या है, वर्तमान दशा का सच्चा चिन्न है। किसानों की दुर्दशा, जमींदारों के अत्याचार, पुलिस के कारनामे, वकीकों और डाक्टरों का नैतिक पतन, धर्म के ढोंग में सरल हृदया स्त्रियों का फंस जाना, स्वार्थसिद्धि के कलुषित मार्ग, देशसेवियों के कष्ट और उनके पवित्र चरित्र, सच्ची शिक्षा के लाभ, गृहस्थी के झंझट, साध्वी स्त्रियों का चरित्र, सरकारी नौकरी का दुष्परिणाम आदि भावों को लेखक ने ऐसी खूबी से चित्रित किया है कि पढ़ते ही बनता है, एक बार शुरू करनेपर बिना पूरा किये छोड़ने को दिल नहीं चाहता। ठूंस ठूंस कर मैटर भर देने पर भी पृष्ठ संख्या ६५० हो गयी। खादी की जिल्दका ३॥) रेशमी ३॥)
१९–पंजाबहरण
ले° पं° नन्दकुमारदेव शर्मा
यह सिक्खोंके पतन का इतिहास है। १९ वीं सदी के आरम्भ मे सिक्स-साम्राज्य महाराज रणजीत सिंह के प्रताप से समृद्धशाली हो गया था। उनके मरते ही आपस की फूट, कुचक्र, अंग्रेजों के विश्वाधात से उसका किस प्रकार पतन हुआ। जो अंग्रेज जाति सभ्यता की डींग हांकती है, उसने अपने परम प्रिय मित्र महाराज रणजीत सिंह के परिवार के साथ किस घातक नीति का व्यवहार किया इसका वास्तविक दिग्दर्शन इस पुस्तक से होता है। इससे अंग्रेजों के सेञ्च पराक्रम का भी पूरा पता चलता है। जो अंग्रेज जाति आज गली गली ढिंढोरे पीट रही है कि "हमने भारत को तब वार के बल जीता है" उनके सारे पराक्रम विलियानवाला के युद्ध में लुप्त हो गये थे और यदि सिक्खों ने मिलकर एक बार उसी प्रकार और हराया होता तो शायद ये लोग डेराडण्डा लेकर कुंच ही कर गये होते। पुस्तक बड़ी खोजसे लिखी गयी है। मोटे कागजपर २५० पृ० का मूल्य केवल २)