शक्ति मुक्ति देनी जय करनी।
तू जगत जननी आराध्य हमारी,
बहुबल धारिनि रिपुदल दमनी॥
तू दुर्गा दस आयुध धारिनि,
तू ही कमला कमल विहारिनि॥
सुखदा, वरदा, अतुला, अमला,
वानी, विद्या-दायिनि, तारिनि॥
सुस्मित, सरला, भूषित विमला,
धरती, भरती, जननी, पावनि।
“जगन्नाथ” कर जोरे बंदत;
जय जय भारत भूमि सुहावनि॥
महेंद्रने देखा, डाकू गाते गाते रोने लगा। महेंद्रने विस्मित होकर पूछा—"भाई! आप लोग कौन हैं?"
भवानंद—"हमलोग संतान हैं।"
महेंद्र—"सन्तान क्या? किसकी सन्तान?"
भवा॰—"माँ की सन्तान।"
महेंद्र—"अच्छा तो क्या संतानका काम चोरी डकैती करके माँ की पूजा करना है? यह कैसी मातृ-भक्ति है?"
भवा॰—"हमलोग चोरी डकैती नहीं करते!"
महेंद्र—"अभी तो तुम लोगोंने भरी गाड़ी लूट ली है?"
भवा॰—"यह चोरी डकैती थोड़े ही है? हमने किसका धन लूटा है?"
महेंद्र—"क्यों? राजाका?"
भवा॰—"राजाका यह धन लेनेका उसे क्या अधिकार है?"
महेंद्र—"यह राजकर था।"
भवा॰—"जो राजा प्रजाका पालन नहीं करता, वह राजा कैसा?"
महेंद्र—"देखता हूं, तुम लोग किसी दिन सिपाहियों की