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आनन्द मठ


तोपके सामने खड़े करके उड़ा दिये जाओगे।"

भवा०-"बहुत सुसरे सिपाहियोंको हम देख चुके हैं। आज भी तो कितने ही थे।"

महेंद्र-"अभीतक पूरी तरह पाला नहीं पड़ा है, जिस दिन पड़ जायगा, उस दिन छठीका दूध याद आ जायेगा।"

भवा०-"अच्छी बात है, मरना तो एक दिन है ही, दो बार तो मरेंगे ही नहीं।

महेंद्र-"फिर जान बूझकर जान देनेसे क्या लाभ?"

भवा०-"महेंद्रसिंह! तुम्हें देखकर मैंने समझा था, तुममें भी कुछ मनुष्यत्व है पर अब मालूम हुआ कि जैसे सब हैं वैसे हो तुम भी हो, तुम केवल पेट पालनेके लिये ही पैदा हुए हो। देखो, साँप पेटके बल रेंगता है, उससे घटकर नीच जीव हो और कोई नहीं है। पर पैर तले दब जानेपर वह भी फन काढ़कर खड़ा हो जाता है। पर क्या तुम्हारा धैर्य अब भी नष्ट नहीं हुआ? क्या मगध, मिथला, काशी, काञ्ची, दिल्ली, काश्मीर किसी भी देशको ऐसी दुर्दशा हो रही है? क्या इनमेंसे एक भी देशके निवासी दाने दानेको तरसते हुए घास, पत्ता, जङ्गली लताएं, सियार-कुत्तोंके मांस और आदमी तककी लाश खानेको मजबूर हो रहे हैं? किस देशमें प्रजाको द्रव्य रखने में भी कल्याण नहीं है? देवताकी उपासना करने में भी कल्याण नहीं है? घरमें बहू-बेटियोंको रखनेमें कल्याण नहीं हैं? बहू-बेटियोंके गर्भ धारण करनेमें कल्याण नहीं। उनके पेट चीर कर लड़के निकाल लिये जाते हैं! सब देशोंके राजा प्रजाका पालन करते हैं, परन्तु हमारे मुसलमान राजा क्या हमारी रक्षा करते हैं? धर्म गया, जाति गयी, मान गया और अब प्राण भी जाया चाहते हैं। इन नशाखोरोंके भगाये बिना हिन्दुओंकी हिन्दुआई अब नहीं रह सकती।

महेंद्र-“कैसे भगाओगे?"