पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/६

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सारे देश की सम्पत्ति हैं। इस गौरव को उन्होंने 'आनन्द मठ' लिखकर ही प्राप्त किया है।

इसी कारण 'आनन्द मठ' का इतना आदर है। कुछ दिन हुए, इसका अनुवाद भी हिन्दी में निकला था; पर इधर वह दुष्प्राप्य हो रहा था, इसी से हमारा विचार इसका अनुवाद करने का हुआ। कुछ कापी लिखी जानेपर हमें हालका छपा हुआ एक दूसरा अनुवाद भी देखने को मिला। परन्तु जब हमने उन दोनों अनुवादों को मूल से मिलाया, तो कुछ भूलें नजर आयीं, इसलिये हमने अनुवाद का काम न रोककर इसे पूरा कर डाला। उन अनुवादों में क्या क्या त्रुटियां हैं, वह सब हम यहां बतलाने की कोई जरूरत नहीं समझते। सिर्फ इतना ही कहना चाहते हैं कि हमने इस अनुवादमें मूल का रस-भङ्ग नहीं होने दिया। कहीं कोई वाक्य, शब्द था वाक्यखण्ड समझ में न आने के कारण, छोड़ने को चेष्टा नहीं की, तथा अनुवाद की भाषा अत्यन्त सरल रखने का प्रयास किया है। साथ ही मूल में जो दो परिशिष्ट अंगरेजी में हैं, उनका हिन्दी-अनुवाद भी दे दिया है; क्योंकि यदि उन्हें अंगरेजी में ही रहने दिया जाता, तो वह भाषा न जानने वाले उससे कुछ भी लाभ नहीं उठा सकते। आशा है, पाठकों को हमारा यह परिश्रम प्रिय प्रतीत होगा।

आरा,
आषाढ़ शुक्ला १ सं १९७९

निवेदक
ईश्वरीप्रसाद शर्मा