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पन्द्रहवां परिच्छेद


मिली हुई भाँग लिये चला आया। उसीके प्रतापसे जो खाँ साहब यहां पहरा दे रहे थे, उन्हें बेहोश किया। यह सब अंगा, पायजामा, पगड़ी और बर्जा उन्हीं हजरतका है।"

सत्या०-"अच्छा; तुम इसी वेशमें शहरसे निकल जाओ। मैं यों नहीं जानेका।"

धीरा०-"क्यों?"

सत्या०-"आज सन्तानोंकी परीक्षाका दिन है।"

इतनेमें महेन्द्र लौट आये। सत्यानन्दने पूछा,-“लौट क्यों आये?"

महेन्द्र-"आप सचमुच बड़े ही सिद्ध महात्मा हैं। मैं आपका साथ छोड़कर नहीं जाऊँगा।"

सत्या०-"अच्छा, तो रहो। हम दोनों आज रातको दूसरी तरहसे छुटकारा पा लेंगे।"

धीरानन्द बाहर चले गये। सत्यानन्द और महेन्द्र कैदखाने में ही पड़े रहे।




पन्द्रहवां परिच्छेद।

ब्रह्मचारीका गाना बहुतोंने सुना था। जीवानन्दके भी कानमें वह गाना पड़ा था। पाठकोंको स्मरण होगा, कि उन्हें महेन्द्रका पीछा करते रहनेका हुक्म हुआ था। उन्हें रास्ते में एक स्त्री मिल गयी थी, जो सात दिनसे भूखी प्यासी रास्तेके किनारे पड़ी थी। उसीकी जान बचाने में लग जानेके कारण जीवानन्दको घड़ी दो घड़ीका विलम्ब हो गया। उसके प्राणोंकी रक्षा कर वे उस स्त्री को कुवाच्य कहते, इधर ही चले आ रहे थे (क्योंकि इस विल-म्बका कारण वही थी) कि उन्होंने देखा कि प्रभुको मुसलमान-