पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/६२

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पन्द्रहवां परिच्छेद


आसपास और कोई गांव नहीं था। उसके बाद फिर जङ्गल हो जङ्गल था। चारों ओर जङ्गल था केवल बीचमें यही एक छोटा सा गांव बसा था, पर छोटा होनेपर भी खूबसूरत था। कोमल घास उगी गोचरभूमि, हरे हरे और कोमल पत्तेवाले आम, कटहल, जामुन और ताड़के पेड़ोंसे भरे हुए बागीचे, बोचमें नीले जलसे भरा हुआ स्वच्छ तालाब, जिसके जलमें बक, हंस और पनडुब्बी तथा किनारेपर कोयल और चकवा-चकई आदि पक्षी विहार करते हैं, कुछ दूरपर मोर ऊंचे स्वरसे बोलते दिखाई पड़ते हैं। घर घर आंगनमें गौए बधी हैं। अन्दर अन्न रखने के लिये मिट्टीको कोठियां भी हैं। इस कालमें धान पैदा नहीं हुआ, इसलिये खाली पड़ी हैं। किसीके छप्परमें मैनाका पींजरा टंगा है, किसीको दीवारोंपर रंग विरंगे चित्र लिखे हुए हैं, किसीके आंगनमें शाकभाजी उगी हुई है! अन्य स्थानोंके लोग दुर्भिक्षके मारे दुःखी, दुबळे पतले हो रहे हैं, पर इस गांवके लोग कुछ सुखी दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि जंगलोंमें मनुष्यके खाने योग्य बहुत सी चीजें पैदा होती हैं। उन्हें लाकर इस गांवके लोग अपने प्राण और स्वास्थ्यकी रक्षा कर रहे हैं।

एक बड़े भारी आमके बगीचेके बीवमें एक छोटा सा मकान था, जिसको चहारदीवारी मिट्टीकी थी और चारों ओर चार घर बने हुए थे। उस घरमें गाय बकरी हैं, एक मोर है, एक मैना है और एक तोता है। पहले एक बकरा भी था, पर उसका खाना जुटना मुश्किल हो गया इसीसे वह छोड़ दिया गया। एक टैंकी भी रखी हुई है और बाहर खलिहान भी बना हुआ है। आंगनमें नीबूका एक पेड़ और कई एक जूही चमेलीकी बेलें भी लगी हैं। परन्तु इस साल वे फूली नहीं। घरके बाहर बरामदेमें एक चरखा रखा है, किन्तु घरमें कोई बड़ा आदमी नहीं है। जीवानन्द लड़कीको गोदमें लिये हुए उसी मकानके अन्दर घुस गये।