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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/६४

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पन्द्रहवां परिच्छेद


निमीने पूछा,-"तब और कौन पीयेगा?"

जीवा०-“यही लड़की पोयेगी। देखती नहीं, इसे हो पिला।"

यह सुन, निमी पलाथा मार कर बैठ गयी और लड़कीको गोदमें सुला, सितुहीले उसे दूध पिलाने लगो। यकायक उसकी आंखोंमें कई आंसू टपक पड़े। उसको एक लड़का होकर मर गया था, उसीको दूध पिलानेकी वह सितुही थी। निमीने झट अपने आंसू पोंछ हंसकर जीवानन्दसे पूछा, "भैया! यह लड़की है किसकी?"

जीवानन्दने कहा,-"यह जानकर तू क्या करेगी मुंहजली?"

निमीने कहा,-"क्या इसे मुझे दे दीजियेगा?"

जीवानन्दने पूछा,-"इसे लेकर क्या करोगी?"

निमीने कहा,-"इसे गोदमें लेकर खिलाऊंगी दूध पिलाऊंगी, पाल-पोसकर बड़ी करूंगी" कहते कहते अभागे आंसू फिर गिर पड़े। उसने फिर उन्हें पोंछ डाला और बनावटी हंसी हंसने लगी।

जीवानन्दने कहा,-"तू इसे लेकर क्या करेगी? तेरे आप ही न जाने कितने बाल बच्चे होंगे।"

निमीने कहा,-"हुआ करें, अभी तो तुम मुझे इस लड़कीको दे ही दो, इसके बाद ले जाना।"

जीवानन्दने कहा,-"अच्छा, जा, लेजा। मैं बीच बीच में आकर इसे देख जाया करूंगा। यह एक कायस्थकी लड़की है। मैं जाता हूं।"

निमीने कहा, "यह क्या भैया? कुछ खाओगे नहीं? दिन बहुत चढ़ आया है। तुम मेरे सिरकी कसम जो बिना कुछ खाये जाओ। दो कौर खालो, फिर चले जाना।"

जीवानन्दने कहा,-अरी पागली! मैं तेरा सिर खाऊंगा या भात? दोनों कैसे खिलायेगी? जा, सिर सलामत रहने दो थोड़ासा भात ही खिला दो।"