जीवानंदने कहा-"और क्या है?"
निमाईमणिने कहा-"एक पका हुआ कटहल पड़ा है।"
यह कह वह एक पका हुआ कटहल उठा लायी। बिना कुछ कहे जीवानद वह सारा कटहल सफाचट कर गये। तब निमाईने हंसकर कहा-“भैया! अब तो कोई चीज खाने लायक नहीं रही।"
भैयाने जवाब दिया,-"कोई हर्ज नहीं और किसी दिन आकर खा जाऊंगा।" अन्तमें, निमोईने जीवानंदको हाथ मुंह धोनेके लिये जल ला दिया। जल ढालते ढालते बोली-“भैया, क्या तुम मेरी एक बात मानोगे?"
जीवा०-"कौनसी बात, कह।"
निमाई-"पहले मेरे सिरकी कसम खाओ।"
जीवा०-"अरी मुहजली! कहती क्यों नहीं!"
निमाई-बात मानोगे न?"
जीवा०-"पहले सुन तो लूं।"
निमाई-"नहीं, पहले मेरे सिरकी कसम खाओ, मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूं।"
जीवा०-"अच्छा, ले मैं तेरे सिरकी कसम खाता हूं और तू मेरे पैरों पड़ना चाहती है तो वह भी कर ले, पर बात तो सुना दे।"
निमाई पहले तो कुछ देरतक सिर नीचा किये, एक हाथसे दूसरे हाथकी अंगुलियां चटकाती रही और कभी जीवानन्दके मुंहकी ओर और कभी नीचे जमीनको ओर देखती रही। इसके बाद बोली,-"जरा भाभीको बुला लूं।"
यह सुनते ही जीवानन्द झारी उठाकर निमीको मारनेकेलिये उठ खड़े हुए और बोले, ला, मेरी लड़की फेर दे। मैं और किसी दिन आकर तेरे दाल चावल लौटा जाऊंगा। बंदरी कहाँ