सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९३
९३
पांचवां परिच्छेद

सत्या०-"स्त्री-पुत्रको?"

दोनों-"उन्हें भी त्याग देंगे।"

सत्या०-"सगे-सम्बन्धियों और दास-दासियोंको?"

दोनों-"उन्हें भी छोड़ देंगे।"

सत्या०—“धन, सम्पद्, भोग विलास?"

दोनों-"आजहीसे इन सबको छोड़ देंगे।"

सत्या०-“इन्द्रियोंको वशमें रखोगे न? कभी किसी स्त्रीके साथ एक आसनपर न बैठोगे?"

दोनों,-"नहीं बैठेंगे। इन्दियोंको वशमें रखेंगे।"

सत्या०-"भगवान्के सामने प्रतिज्ञा करो, कि अपने लिये या अपने सगे-सम्बन्धियोंके लिये अर्थोपार्जन न करोगे। जो कुछ पैदा करोगे, उसे वैष्णवोंके धनागारमें दोगे।"

दोनों-"हां, ऐसा ही करेंगे।"

सत्या०-"सन्तानधर्मके लिये स्वयं अस्त्र हाथमें लेकर युद्ध करोगे न?"

दोनों,-"हाँ"

सत्या०-"रणसे कमी पीछे तो न हटोगे?"

दोनों-"कभी नहीं।"

सत्या०-“यदि तुम्हारी यह प्रतिज्ञा भङ्ग हो जाय?"

दोनों-"तो जलती चितामें प्रवेश कर या विष खाकर प्राण त्याग कर देंगे।"

सत्या०-"एक बात और है। तुम किस जातिके हो, महेन्द्र तो कायस्थ है।"

दूसरेने कहा-“मैं तो ब्राह्मणका बालक हूं।"

सत्या--"अच्छी बात है। क्या तुम अपनी जाति त्याग कर सकोगे? सब सन्तानोंकी जाति एक है। इस सदाव्रतमें ब्राह्मण शूद्रका कोई विचार नहीं है। बोलो, कहते हो?"