पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/१८

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आर्थिक भूगोल के सिद्धान्त

प्राषिक भूगोल के सिद्धान्त मिलने से जो आर्थिक समस्याएँ उपस्थित होती हैं उनका भी समावेश इस विषय में होना आवश्यक है। ___मनुष्य जिस स्थान में निवास करता है वहां के अनुसार ही उसे अपना । ___... जीवन बनाना पड़ता है। मानवीय भूगोल ( Human . मनुष्य तथा • Geography ) के विद्वानों का कथन है कि उसकी परिस्थिति " जातियां अपने निवास स्थान की उपज हैं" किसी Environments देश के निवासियों का मुख्य धंधा क्या होगा ? वहाँ का . . . पहनावा क्या होगा ? तथा उनका,-रहन सहन, स्वभाव और कार्यक्षमता कैसी होगी ? यह बहुत कुछ उस देश की भौगोलिक परिस्थिति पर ही निर्भर है। मनुष्य का पेशा उसके स्वभाव पर एक प्रकार का विशेष प्रभाव डालता है। भिन्न-भिन्न जातियों के स्वभाव का अध्ययन करने से यह बात स्पष्ट हो जावेगी। संसार की समस्त शिकारी जातियां लड़ाकू होती हैं। वे जंगलों में पशु- पक्षियों को मार कर तथा प्रकृति द्वारा उत्पन्न किये हुये फलों पर अपना गुजारा करती हैं। प्रकृति की दी हुई चीज़ों को नष्ट करते-करते उनका स्वभाव नष्टकारी.बन जाता है, विनाश ही उनका ध्येय होता है, यही कारण है कि ऐसी जातियां लड़ने-भिड़ने के लिए बहुत उत्सुक रहती हैं, और उनकी दृष्टि में जीवन का मूल्य नहीं होता । गड़रिये का स्वभाव शिकारियों से मिन्न होता है क्योंकि वह अपनी भेड़ों तथा पशुओं की रक्षा करता है, उसके लिए जीवन बहुत मूल्यवान है। उसका ध्येय अपनी पशु-सम्पत्ति की रक्षा करना है, फिर वह कलह प्रिय क्यों होगा ? इसी प्रकार किसान भी शान्ति- प्रिय होता है. क्योंकि उसका सम्बन्ध भूमि से है। भूमि पर खेती-बारी तभी ठीक तरह से हो सकती है जब देश में शान्ति हो। भूमि से सम्बन्धित होने के कारण किसान कभी प्रवास ( Migration ) का विचार ही नहीं करता, वह समाज के अन्दर कोई क्रान्तिकारी उलट-फेर पसन्द नहीं करता। यही कारण है कि वह पुरानी रीतियों को श्रद्धा की दृष्टि से देखता है, और कोई नई बात जल्दी ही स्वीकार नहीं करता। उसको अपने वंश- परम्परागत अनुभव पर अधिक विश्वास होता है। पशु पालने वाली जातियों शान्ति प्रिय होती हैं, इस लिये वे भी रूढ़िवादी होती हैं और कोई परिवर्तन पसंद नहीं करतीं। ." बड़े-बड़े कारखानों में काम करने वाले' तथा विशाल नगरों में रहने वाले मिल मजदूरों का स्वभाव- सर्वथा भिन्न होता है। वह पुरानी रस्मों में विश्वास नहीं रखता और न उसे किसी स्थान विशेष से अधिक प्रेम ही