पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल होता है। मैंचेस्टर के कारखाने में काम करने वाला मजदूर यदि कनाडा में धन उपार्जन का अच्छा अवसर पाता है तो वह निस्संकोच अपना देश छोड़ कर कनाडा चला जाता है। इसके विपरीत संयुक्त प्रान्त का ग्रामीण भूखे रह कर भी अपने बाप-दादों के स्थान को नहीं छोड़ना चाहता । चाहे कोई भी देश क्यों न हो वहाँ की भिन्न-भिन्न पेशेवाली जातियों का स्वभाव अवश्य ही भिन्न होगा। । यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि धंधा या पेशा उस देश की भौगो- लिक परिस्थिति ( Natural Environment ) पर निर्भर है, अतएव अप्रत्यक्ष रूप से जातियों के स्वभाव तथा उनके विचारों पर भी भौगोलिक परिस्थिति का प्रभाव पड़ता है। धीरे-धीरे इन जातियों में कुछ विशेष गुण उत्पन्न हो जाते हैं. यहाँ तक कि वे एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हो जाती हैं। हमें जो जातियों में भिन्नता दिखलाई देती है वह उनके निवास स्थान के प्रभाव के कारण है। केवल स्वभाव और विचार ही नहीं, उसके स्वास्थ्य तथा मानसिक विकास पर भी भौगोलिक परिस्थित का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। यदि एक बिलोची, बिलोचिस्तान के पहाड़ों की तरह ही कठोर और बलशाली होता है तो केवल इसलिए कि वहाँ की भौगोलिक परिस्थिति ने उसको ऐसा बना दिया है। यदि बंगाल प्रान्त का रहने वाला मनुष्य निर्बल होता है और नेपाल की घाटियों में रहने वाला मनुष्य हृष्टपुष्ट और बलवान होता है, तो इसका कारण दोनों देशों की भौगोलिक परिस्थिति में छिपा है । इसी प्रकार जातियों के रीति-रस्म तथा उनके आचार- विचार भो भिन्न हो जाते हैं। यही कारण है कि यदि एक देश के नाम पर कोई कार्य किया जाता है तो उस देश के निवासी उसमें भरसक सहयोग देते हैं किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय ( International) कार्यों में सब उदासीन दिखलाई पड़ते हैं। पृथ्वी को धरातल की बनावट सब जगह एक सी नहीं होती । कहीं ऊँचे पहाड़ हैं तो कहीं नीचे मैदान । धरातल में धीरे-धीरे पृथ्वी के परिवर्तन होता रहता है। वायु, जल, धूप, पौधे तथा धरातल की हिम पृथ्वी के धरातल ( Relief ) का रूप बदलते वनावट रहते हैं। नदियों के द्वारा घाटिया और नीचे मैदान (Relief) बनते हैं। वायु एक स्थान की मिट्टी को उड़ाकर दूसरे का प्रभाव स्थान पर जमा देती है। बर्फ पौधे तथा तेज धूप भी धीरे धीरे धरातल को तोड़ते रहते हैं। इनके सिवा पृथ्वी के कुछ भाग प्राकृतिक रूप से ही ऊँचे उठते जा रहे हैं और कुछ भाग नीचे होते जा रहे हैं । समुद्र भी कहीं-कहीं पृथ्वी को काटता रहता है तो