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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल मनुष्य को अपने मकान बनाने में जलवायु का बहुत विचार करनी पड़ता है। जिन देशों में वर्षा अधिक होती है वहाँ जलवायु और के मकानों की छतें ढालू होती हैं। बहुत ठंडे देशों में इमारतें मकान बिना आंगन के बनाये जाते हैं और गरम देशों में बिना आँगन का मकान रहने योग्य नहीं होता। ठंडे देशों में कमरे एक दूसरे से सटाकर बनाये जाते हैं जिससे रहने वाले ठंड से बच सकें । गरम देशों में छत ढाल नहीं होती और मकान में ज्यादा हवा आने के लिए बरामदा बनाया जाता है। ठंडे देशों में सड़कें अधिक चौड़ी बनाई जाती हैं जिससे सूरज की धूप खूब मिलती रहे। इसके विपरीत गरम देशों में पतली गलियाँ ही अधिक दिखलाई देती हैं. हाँ जहाँ आमदरफ्त अधिक होती है वहाँ चौड़ी सड़क ही बनानी पड़ती है। संक्षेप में कह सकते हैं कि मनुष्य का दैनिक जीवन जलवायु से बहुत कुछ प्रभावित होता है। व्यापारिक मार्गों पर भी जलवायु का कुछ कम प्रभाव नहीं है । जिन स्थानों पर बहुत बर्फ पड़ती है वहाँ रेल और जहाज जलवायु और व्यर्थ हो जाते हैं। जाड़े में उत्तर के समुद्र जम जाते व्यापारिक मार्ग हैं और जहाजों का आना-जाना रुक जाता है। जहाँ रेलवे लाइन बर्फ से दब जाती है वहाँ भी मार्ग की असुविधा हो जाती है। जिन देशों में वर्षा बहुत अधिक होती है वहाँ भी मार्ग को बहुत असुविधा हो जाती है। जिन देशों में अत्यधिक वर्षा होती है रेलवे लाइनें बह जाती हैं। सड़कों पर पुल न होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो सकता, साथ ही कच्चे रास्तों पर तो श्राना- जाना ही असम्भव हो जाता है। रेगिस्तानों में हवा रेत की पहाड़ियाँ खड़ी करके रास्ता रोक देती है और रेलवे ट्रेनों को घंटों रुकना पड़ता है। प्राचीन काल में जब जहाज भाप से नहीं चलते थे तब तो हवा ही उनका अवलम्बन था। वैसे तो अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु का प्रत्येक धंधे पर प्रभाव पड़ता है किन्तु कुछ घंधे प्रत्यक्ष रूप से जल-वायु पर निर्भर जलवायु और हैं। उदाहरण के लिए सूती कपड़े के धंधे को नम उद्योग-धंधे हवा की आवश्यकता होती है जिससे सूत के तार न टूटें, और फिल्म व्यवसाय के लिए तेज धूप की घावश्यकता होती है । खेती, फलों का धंधा तथा अन्य धंधे तो बहुत कुछ जलवायु पर ही निर्भर हैं।