पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/२५९

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गौण उधोग-धंधे

. गौण उद्योग-धन्धे २४६ जर्मनी, और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई जाती है । बर्तन के ऊपर ग्लेज़ चढ़ाकर उसे सुन्दर तथा टिकाऊ बनाते हैं । पाटरी तीन प्रकार की होती है। (१) मिट्टी के बर्तन, (२) पत्थर के बर्तन, तपा पोरसिलेन ( Porce- lain ) चीन और जापान के पोसिलेन संसार प्रसिद्ध हैं । अब फ्रांस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन में यह धन्धा विशेष उन्नति कर गया है। इन्हीं देशों में यह धन्धा केन्द्रित हैं। चमड़े का सभ्य संसार में बहुत उपयोग होता है। अधिकांश चमड़ा जूते बनाने के काम में आता है किन्तु कारखानों की चमड़े तथा चमड़े मशीनों की बेल्ट, सूट केस, दस्ताने, पर्स तथा अन्य की वस्तुएँ वनाने विलासिता की सामग्री भी चमड़े की ही बनती है। का धंधा चमड़ा गाय, बैल, भेड़, बकरी, सुअर, सॉप और मगर की खाल से तैयार किया जाता है। इन खालों को कुछ छालों वृक्षों की पचियों और फलों की सहायता से कमाया जाता है और चमड़ा तैयार होता है । हल्के चमड़े को रसायनिक पदार्थों से कमाया जाता है । संयुक्तराज्य अमेरिका में आधा चमड़ा क्रोम पद्धति से तैयार किया जाता है। चमड़ा कमाने का धन्धा सभी देशों में होता है किन्तु मुख्य नीचे लिखे हैं:- संयुक्तराज्य अमेरिका, जरमनी, ब्रिटेन, और फ्रांस । इन देशों में खास. बहुत कम होती है। वे खाल बाहर से मंगाते हैं। खालें भेजने वालों में अरजेनटाइन, यूरग्वे, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, तथा भारत मुख्य हैं। संयुक्तराज्य अमेरिका में जूते का धन्धा मैसाचुसटस ( Massachusetts ) न्यू-यार्क इलीनायंस ( Illinois ) विसकौन्सिन ( Wisconsin) और न्यूजरसी (New Jersey ) में केन्द्रित है। संयुक्तराज्य अमेरिका के अतिरिक्त इङ्गलैंड, फ्रांस तथा जैकोस्लाविका जूता बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। सभ्यता के विकास के साथ साथ कागज की मांग बहुत कागज का धन्धा बढ़ गई है। पुस्तकों, पत्रों और मासिक पत्रों का प्रकाशन संसार में इस तेजी से बढ़ा है कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। अधिकांश कागज नरम लकड़ी (कानीफेरस) का बनता है इस कारण लकड़ी की माँग इस धन्धे के लिए बेहद बढ़ गई है। अधिकतर कागज स्मस (Spruce ) और हैमलाक ( Hemlock ). का बनता है किन्तु पिछले दिनों पीला . पापलर (Yellow Poplar ) तथा ऐसपन (Aspen) बहुत काम में आने लगा है । इन पेड़ों की नरम लकड़ी की-लुन्दी (Pulp ) बनाई जाती है। लकड़ी की लुब्दी दो प्रकार से बनाई जाती था. भू०-३२ . .