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आर्थिक भूगोल

आर्थिक भूगोल उन्नति नहीं हो पाती.। अस्तु उन देशों में जनसंख्या को बढ़ाने की कोशिश की जाती है। किसी भी देश की आबादी के धनी अथवा निखरी होने के बहुत से कारण हैं, उनमें भूमि की पैदावार मुख्य है। मनुष्य के लिए भोजन- वन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की ज़रूरत होती है। अतएव जिन देशों में पैदावार अधिक होती है वहां की आबादी घनी होती है और जहाँ पैदावार कम होती है वहाँ आबादी बिखरी होती है। जिस भूमि पर कुछ उत्पन्न नहीं होता वहाँ मनुष्य नहीं रह सकता । रेगिस्तान जहाँ किसी प्रकार की भी पैदावार नहीं हो सकती आज भी जनशून्य है। इसका यह अर्थ नहीं है कि जहां अधिक वनस्पति हो वहाँ अधिक जनसंख्या पाई जावेगी। जंगलों में बहुत कम श्राबादी होती है। इसका अर्थ यह है कि जिस प्रदेश में भूमि से जितनी अधिक पैदावार उत्पन्न की जा सकेगी अथवा धंधों के द्वारा जितनी अधिक सम्पत्ति ( Wealth ) उत्पन्न की जा सकेगी उतनी ही अधिक वहाँ आबादी होगी। मनुष्य भिन्न-भिन्न पेशों को अपना- कर अपना निर्वाह करता है। शिकारी जातियां वनों के पशुओं और वनस्पति पर निर्भर रह कर, चरवाहा पशुओं को पालकर, किसान खेती के द्वारा, तथा औद्योगिक जातियाँ पक्का माल तैयार करके उनको भोज्य पदार्थों से बदल कर, निर्वाह करती हैं। पेशे और आबादी का घनिष्ठ सम्बन्ध है। जंगलों में प्रति वर्गमील श्राबादी बहुत कम होती है। इसका कारण यह है कि शिकारी शिकारी जातियां कोई चीज़ पैदा नहीं करतीं । वे तो जातियाँ केवल प्रकृति द्वारा उत्पन्न हुई चीजों का उपभोग ( Consume) करती हैं। पशु-पक्षियों को मार कर, मछलियों को पकड़ कर, तथा फलों को इकट्ठा करके ही शिकारी अपना निर्वाह करता है। अतएव उसको अपने कुटुम्ब के भरण-पोषण के लिये बहुत अधिक क्षेत्रफल ( Area ) की आवश्यकता होती है। . शिकार द्वारा वनों में भोजन प्राप्त करना कठिन होता है क्योंकि कभी कभी शिकार नहीं मिलता। इस कठिनाई से बचने पशु चराने के लिये मनुष्य ने पशुओं को पालना श्रारम्भ किया। वाली पशुओं को पालने से भोजन निश्चित रूप से मिल जातियाँ सकता है। पशुओं को पालकर उनके दूध तथा मांस पर निर्वाह करके थोड़ी भूमि पर भी अधिक जनसंख्या