पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३४६

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मुख्य व्यापारिक देश

मुख्य व्यापारिक देश देशों को, परन्तु फिर भी बीसवीं शताब्दी में जर्मनी ने आश्चर्य जनक औद्योगिक उन्नति की है । यद्यपि जर्मनी की भूमि उपजाऊ नहीं है, वर्षा भी यथेष्ट नहीं होती, किन्तु फिर भी सारे देश में खेती होती है। लगभग ४४ प्रतिशत भूमि पर खेती की जाती है। जर्मनी में नमक और पोटाश बहुत निकाला जाता है। इस कारण खेती के लिए उत्तम और सस्ती खाद मिलने को सुविधा है । उत्तर तथा उत्तर पूर्व में बड़े बड़े फार्मों की अधिकता है । तथा दक्षिण और पश्चिम में छोटे छोटे खेतों की ही अधिकता है जिन पर गहरी खेती ( Intensive Cultivation) होती है। जर्मनी में कोयला और लोहा दोनों ही यथेष्ट राशि में मिलते हैं। लक्समबर्ग की खानों से बहुत लोहा निकाला जाता है । इसी कारण. लोहे और स्टील का धन्धा यहाँ अधिक उन्नति कर गया है । जर्मनी में नमक और पोटाश की बहुतायत के कारण यहाँ रसायनिक पदार्थों को बनाने का धन्धा भी बहुत उन्नतशील है। खनिज पदार्थों की विपुलता के अतिरिक्त जर्मनी की स्थिति ने भी उसे औद्योगिक देश बनाने में सहायता पहुँचाई है । योरोप के मध्य में होने के कारण इसका योरोप के सभी देशों से सम्बन्ध हो गया है। आल्पस पर्वत माला में टनल बन जाने के कारण जर्मनी का भूमध्यसागर के देशों से भी सम्बन्ध हो गया है । इसके अतिरिक्त राइन और यल्ब नदियां जर्मनी के मुख्य औद्योगिक केन्द्रों को उत्तर-सागर ( North Sea) से जोड़ती हैं । माग! की सुविधा ही के कारण जर्मनी का व्यापार बहुत बढ़ गया है। जर्मनी की औद्योगिक उन्नति का श्रेय बहुत कुछ जर्मन सरकार को भी है। १८७० के अरान्त राज्य ने उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन तथा सहायता देने की नीति को अपनाया और तभी से जर्मनी ने औद्योगिक उन्नति की। किन्तु जर्मनी के उद्योग-धन्धों की उन्नति का मुख्य कारण वहाँ वैज्ञानिक खोज है जर्मनी के विश्व विद्यालयों तथा इंस्टिट्यूटों में जितनी अधिक वैज्ञानिक खोज हुई है उतनी कहीं नहीं हुई । यही नहीं खेती की उन्नति भी बहुत कुछ वैज्ञानिक खोज के.ही कारण हुई है। यदि देखा जाये तो जर्मनी की औद्योगिक उन्नति में प्रकृति ने इतनी सहायता नहीं दी जितनी कि जर्मनी के वैज्ञानिकों ने। यह जर्मन जाति के परिश्रम का ही फल है कि जर्मनी एक उन्नत राष्ट्र बन सका। १९१६ के उपरान्त जर्मनी के योरोपीय महायुद्ध में परास्त हो जाने के फल स्वरूप उसकी बहुत हानि हुई । जर्मनी के , अफ्रीका के सारे उपनिवेश श्रा० भूः-४३