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पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३९९

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आर्थिक भूगोल

. ३२८ आर्थिक भूगोल (७) गरमी और नमी होने के कारण वर्षा के दिनों में बीमारियों को ही बढ़वार नहीं होती मनुष्य में प्रालस्य और पुरुषार्थहीनता भी उत्पन्न हो जाती है। इससे उत्पादन कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। किन्तु यह बुरा प्रभाव केवल उन्हीं प्रदेशों में दिखलाई देता है जहाँ वर्षा अधिक होती है। (८) भारत में वर्षा बहुत ही अनिश्चित है किसी वर्ष वर्षा बहुत कम होती है और सूखा पड़ जाता है फसलें नहीं होती दुर्भिक्ष पड़ जाता है दूसरी वर्ष वर्षा अधिक होने से नदियों में बाढ़ आ जाती है उससे भी फसलों को हानि पहुँचती है। इस कारण भारतीय ग्रामीण निराशावादी और भाग्यवादी बन गया है। (8) क्योंकि वर्षा वर्ष के केवल तीन गरमियों के महीनों में होती है और वह भी अनिश्चित । इस कारण जाड़े में फसलें उत्पन्न करने के लिए सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यही कारण है कि भारतवर्ष की खेती सिंचाई पर बहुत कुछ निर्भर है और खेती के लिए सिंचाई का यहाँ इतना महत्व है। अभ्यास के प्रश्न (१) मानसूनी जलवायु से आपका क्या अभिप्राय है। उसकी क्या विशेषताएँ हैं ? (२) भारतवर्ष की वर्षा की क्या विशेषताएँ हैं और उनका भारत के आर्थिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (३) भारत में वर्षा का वितरण एक सा क्यों नहीं है ? भिन्न भिन्न भागों में वर्षा कम और अधिक क्यों है ? (४) हिमालय का आर्थिक महत्त्व क्या है विस्तार पूर्वक लिखिए । (५) गंगा और सिंध के मैदान इतने उपजाऊ क्यों हैं ? (६) भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए' और उनके गुण दोष बतलाइए? (७) भूमि का कटाव (Soil erosion ) क्या है, उससे क्या हानियां हैं और उसको किस प्रकार रोका जा सकता है। (८) रेगर मिट्टी और सिंघ गंगा के मैदानों की मिट्टी का खेती के लिए क्या महत्व है समझा कर लिखिए ।