पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/४००

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सोलहवां परिच्छेद
वन-सम्पति

सोलहवाँ परिच्छेद वन-सम्पत्ति . ब्रिटिश सत्ता के स्थापित होने के पूर्व भारतवर्ष में वन सम्पत्ति बहुत अधिक थी। इसके उपरान्त जनसंख्या की बढ़ती के कारण खेती के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता हुई। साथ ही रेल. इमारतों और जभाने के लिए अधिकाधिक लकड़ी की मांग बढ़ने लगी। लकड़ी की इस बढ़ती हुई मांग तथा खेती योग्य भूमि की अधिकाधिक माग के कारण बहुत से जंगल काट कर साफ कर दिए गए। इस प्रकार बहुत से मूल्यवान वन नष्ट हो गए। उस समय तक सरकार ने वनों की रक्षा की ओर ध्यान ही नहीं दिया। १८५७ की राज्यक्रान्ति के उपरान्त सरकार ने वनों की ओर ध्यान दिया और उनकी रक्षा तथा उन्नति के लिए प्रत्येक प्रान्त में वन-विभागों की स्थापना की गई। अब प्रान्तीय वन-विभाग प्रान्तों में वनों की देख-भाल तथा उनका प्रबंध करते हैं। भारतवर्ष जैसे कृषि प्रधान देश में किसान बहुत कुछ वनों पर निर्भर रहते हैं। पर्वतों पर खड़े हुए वनों को नष्ट कर देने से मैदानों में रहने वालों का जीवन संकटमय हो जाता है । वर्षा का पानी तथा नदियों स्वच्छंदतापूर्वक बहती हैं। इसका फल यह होता है कि उपजाऊ भूमि रेत से पट जाती है। भूमि का कटाव ( Erosion of soil ) होने लगता है और भीषण बाढ़ें आती है जिससे खेती और नाबादी नष्ट हो जाती है। वनों का जलवायु पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। हरे वृक्ष बादलों को आकर्षित करते हैं। श्रतएव वन-आच्छादित प्रदेश में अधिक वर्षा होती है। वृक्ष प्रति दिन वायु को पत्तियों के द्वारा जल देते रहते हैं। इस कारण गरम देशों में वन प्रान्तों का तापक्रम कम रहता है । वनों के वृक्षों की जड़े वनों की भूमि को जल सोखने वाली बना देती हैं। इस कारण वर्षा का जल व्यर्थ न बहकर पृथ्वी में सूख जाता है और नीचे पानी अधिक इकड़ा हो जाता है जिससे सिंचाई में सुविधा होती है।