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आर्थिक भूगोल

श्रार्षिक भूगोल (३ ) तालाब । उत्तर पश्चिम में नहरों की अधिकता है। उत्तर के. मैदानों में कुओं से सिंचाई अधिक होती है। तथा दक्षिण प्रायद्वीप और मदास प्रान्त में तालाब और बाँधों से सिंचाई अधिक होती है। वैसे कुयें प्रत्येक . भाग में पाये जाते हैं और उनसे सिंचाई की जाती है। किस भाग में कौन सा सिंचाई का साधन अधिक महत्वपर्ण है यह वहाँ की भौगोलिक परिस्थिति पर निर्भर है। नहरे दो प्रकार की होती हैं (१) स्थायी नहर (Perennial canal) जो कि वर्ष भर सिंचाई के उपयोग में आती हैं। इन नहरें नहरों के सिरे पर फाटकों इत्यादि से नादियों के पानी का नियंत्रण किया जाता है जिससे वर्षभर पानी नहर को मिल सकता है। अस्थायी अथवा बाढ़ वाली (Inundation canal) नहरें उसी समय सिंचाई के उपयोग में आती हैं जब कि नदी में बाढ़ श्रांती है और नदी में पानी ऊँचा उठ जाता है। जब नदी में पानी नीचा हो. जाता है तो ये नहरें व्यर्थ हो जाती हैं नहरें उसी प्रदेश में बनाई जा सकती हैं जहाँ की नदियां बारहो मास बहने वाली हो । उत्तर भारत की सभी नदियां हिम श्राञ्छादित हिमालय से निकलती हैं। इस कारण वे दक्षिण भारत की नदियों की भांति गरमी में सूखती नहीं। हिम के पिघलने से उनमें पानी बना रहता है। यदि धरातल पथरीला हो तो भी नहरें नहीं निकाली जा सकती क्योंकि नहर खोदने में बहुत कठिनाई और कश्पनातीत व्यय होता है। उत्तर भारत में भूमि नरम है। कहीं पत्थर का नाम ही नहीं है । श्रतएव कम खर्चे से नहर खुद सकती है। उत्तर भारत में नदियों का एक जाल सा बिछा हुआ है। इस कारण नहरें आसानी से निकाली जा सकी। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत में भूमि . उपजाऊ है । ऊबड़ खाबड़ वीरान प्रदेश नहीं हैं। इस कारण नहर का पानी प्रत्येक पग पर काम में आता है, व्यर्थ में नहीं बहता। उत्तर-पश्चिम में वर्षा कम होने के कारण वहाँ खेती बिना सिंचाई के सम्भव ही नहीं है। यही कारण है भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिम भाग में नहरों के द्वारा ही सिंचाई होती है। बीसवीं शताब्दा के प्रारम्भ में पंजाब के पश्चिमी जिले आधे रेगिस्तान थे। लायलपर, शाहपुर, मंग तथा मांटगेमरी के पंजाव की नहरें जिलों में वर्षा बहुत कम होती है। श्रतएव नहरों के निकलने के पर्व सारा प्रदेश सूखा नज़र · श्रातां था; किन्तु पंजाब सरकार ने नहरें निकाल कर इस सूखे प्रदेश को हरा भरा बना . -