खेती ४५ में चावल उत्पन्न होता है। भारतवर्ष में पाठ करोड़ एकड़ से कुछ ही कम भूमि पर चावल की खेती होती है। संयुक्तप्रान्त तथा पंजाब को छोड़ कर अन्य प्रान्तों में वर्ष में दो या तीन फसलें होती हैं। बंगाल में तीन फसलें उत्पन्न की जाती हैं। चावल की खेती बीज छिटक कर. और पौधे लगाकर दोनों ही तरह से होती है। चावल की फसल को पानी की इतनी अधिक आवश्यकता होती है कि यदि अधिक दिनों फसल को वर्षा अथवा पानी न मिले तो फसल नष्ट हो जाती है। इसी कारण जहां वर्षा कम अथवा अनिश्चित होती है वहाँ सिंचाई की आवश्यकता होती है। बंगाल में कृषि विभाग ने ऐसा चावल उत्पन्न करने का प्रयत्न किया है जो शुष्कता को सहन कर सके और प्रति एकड़ पैदावार. अधिक हो । बंगाल का घेराल" ऐसा ही चावल है। प्रति एकड़ ३२ मन तक उसकी पैदावार होती है। इसके अतिरिक्त अन्य दूसरे चावल भी हैं जो कि अच्छी किस्म के हैं। यद्यपि भारतवर्ष में चावल की खेती.बहुत होती है और यह इस देश का मुख्य खाद्य पदार्थ है फिर भी चावल की पैदावार प्रति एकड़ यहाँ बहुत कम है। भारतवर्ष में प्रति एकड़ ८३६ पौंड चावल उत्पन्न होता है जबकि जापान में प्रति एकड़ २३५० पौंड चावल उत्पन्न होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यहाँ के बीज अच्छी किस्म के नहीं हैं और किसान भूमि में खादं नहीं डालता | चावल की प्रति एकड़ पैदावार बढ़ाने के लिए अच्छे बीज और खाद की बहुत आवश्यकता है। भारतवर्ष के उन भागों में जहाँ कि चावल: उत्पन्न होता है बहुत धनी आबादी है। इस कारण देश में ही अधिकांश चावल खप जाता है अधिकतर चावल का व्यापार अन्तर प्रान्तीय है। बंगाल तथा मध्यप्रान्त से चावल संयुक्तप्रान्त तथा बिहार को भेजा जाता है। मध्यप्रान्त में जनसंख्या कम है। इस कारण चावल बाहर भेज दिया जाता है और बंगाल में चावल बहुत अधिक होता है। इस कारण कुछ बाहर भेजा जाता है। पहले भारतवर्ष से चावल विदेशों को बहुत भेजा जाता था किन्तु बर्मा के मारतवर्ष से पृथक कर दिये जाने के कारण अब चावल का निर्यात (Export) बहुत गिर गया है। धान'को कूट और साफ करके बेचा जाता है। बहुत से किसान कली के द्वारा घर पर ही अपने धान को कूट और 'साफ कर लेते हैं। किन्तु क्रमशः चावल को साफ करने वाली मिलों की संख्या बढ़ रही है। बंगाल में चावल कूटने की बहुत अधिक मिलें स्थापित हो गई हैं। "हावड़ा तो भा. भू०-५६
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