'. ५५० चापिकाभूगोक्ष अन्य व्यवसायियों ने भी कारखाने स्थापित करना प्रारम्भ कर दिये। कुछ वों केही उपरान्त अहमदाबाद में पहली मिलमखुली और धीरे धीरे वही भी मिलों की संख्या बढ़ने लगी । सन् १९१४ में जब प्रपंमायोरोपीय युद्ध श्रारम्भ हुआ उस ममयः देश में २३६ वस्त्र तैयार करने के कारखाने चल रहे थे जिनमें २४०, मजदूर काम करते थे। योरोपीय युद्ध के समय मैंचेस्टर शायर का कपड़ा नहीं पा रहा था । इसाकारणं भारतीय धंधा खूब चमको । 'यहाँ तक कि भारतवर्षः समीपवर्ती एशियाई देशों को कपड़ा भेजनें लगा किन्तु युद्ध के.समाप्त होने पर धंधे..को भयंकर परिस्थित का सामना करना पड़ी। जापान और मैंचेस्टर की प्रतिस्पर्धा के कारण भारतीय व्यवसाय को घोटा होने लंगा । बहुत अान्दोलन के पश्चात् भारत सरकार को विवश होकर धिंधे को संरक्षण (Protection) प्रदान करना पड़ा सिाथ ही देश में विदेशी वत्र 'बहिष्कार और स्वदेशी आन्दोलन के फलस्वरूप भारतीय वन व्यवसाय को बहुत सहायता और प्रोत्साहन मिला जिससे व्यवसाय खूब चमक उठा सूती वस्त्र व्यवशाय देश का सबसे महत्वपूर्ण धंधा है। सूती कपड़े के कारखानों में ५ लाख मजदूरों से अधिक काम करते हैं। देश के सब कारखानों में जितने मजदूर काम करते हैं उनके एक चौ फैयाँई से अधिक केवन्न वस्त्र व्यवसाय में लगे हुये हैं। इसी से इस धंधे की महत्ता प्रतीत होती है। भारतवर्ष के.वत्र व्यवसाय को दो बड़ी सुविधाये प्राप्त हैं। एक तो कंपास भारत में ही उत्पन्न होती हैं दूसरे भारतवर्ष कपड़े की खपत का. बहुत बड़ा वाज़ार है । भारतवर्ष कपड़े की खपत . का इतना बड़ा बाजार है कि जिसका ठीक ठीक अनुमान करना भी कठिन हैं । भारतवर्ष के बाजार की विशालता तो इंसी से ज्ञात होती है. कि यद्यपि जापान और ब्रिटेन से जितना कंपड़ा प्रांता वह देश को उत्पत्ति की तुलना में नगण्य है. फिर भी ब्रिटिश तथा जापानी कपड़े का भारतवर्ष सबसे बड़ा ग्राहक है। भारतवर्ष में वन व्यवसाय के केन्द्र कपास उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में स्थापित हैं। बबई सबसे बड़ा वस्त्र व्यवसाय का. केन्द्र है । बम्बई कपास की ‘सबसे बड़ी मंडी: है। यहां से कपास-विदेशों को : जाती है। अतएव बम्बई । को मिलों को कंपास मिलने में बहुत सुविधा : रहती है। यही नहीं बम्बईको मशीनरी: विदेशों से भगाने की भी सुविधा है, रेल का किराया नहीं देना पड़ता। श्रारम्भ में यह सुविधायें बहुत महत्त्वपूर्ण थीं। किन्तु अब-बम्बई को "कुछ असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है बम्बई में कारपोरेशन: टैक्स इत्यादि अधिक हैं। मजदूरों की मजदूरी कुछ अधिक है, जमीन की बहुत . .
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