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- उद्योग-धंधे
सन् १६१४ में योरोपीय-महायुद्ध के दिनों में तो जूट के धंधे को आशातीत लाम हुआ। उस समय जट के कारखानों में मानों चाँदी वरस रही थी। 'किन्तु उसके बाद जूट के बुरे दिन प्रारम्भ हुये। विशेषकर १९२६ से.१९३८ तक जो विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (EconomiciDepression)- प्रगट हुई उससे तो जूट के धंधे को और भी धाका लगा, साथ ही खेती की पैदावार को ले जाने के लिये विशेष प्रकार के जहाज़ भी बन गयें। इस कारण बोरों इत्यादि की मांग बहुत कम हो गई। इसका फल यह हुआ कि जूट के कारखानों ने सप्ताह में पांच दिन काम करके तथा. काम के घंटे घटा कर जूट की पूर्ति (Supply)" को कम करने का प्रयत्न किया । सन् १९३६ के योरोपीया युद्ध के फलस्वरूप जट के बोरों तथा कनवैस की मांग फिर बढ़ी हैं किन्तु यह स्थायी नहीं है। ":' भारत के जूट के कारखाने अधिकतर जूट का सामान विदेशों को भेजने के लिये तैयार करते हैं । भारतवर्ष में जूट के सामान की खपत कम है। अतएवं अधिकांश 'जूटं का सामाने विदेशों को विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका को भेजा जाता है । भारतीय मिले बोरों, हैसेन जूट का कपड़ा, कैनवस, 'सुतरी "तथा रस्सी तैयार करके विदेशों को भेजते हैं। सबसे अधिक • बोरे तयार जूट का कपड़ा तैयार किया जाता है। कैनवस तथा सुतली बहुत कम तैयार होती है। 'सूती कपड़े के धंधे के विपरीत-भारतीय जूट के धंधे पर विदेशी पूंजी- पतियों का प्रभुत्व है। भारतीय पूंजी तथा प्रबंध अपेक्षाकृत कम ही है । लोहे का धंधा भारतवर्ष में प्राचीन काल में भी उन्नत अवस्था में था। 1... देहली की प्रसिद्ध कीली इस बात का प्रमाण है। लोहा और स्टील आज भी संसार के इने गिने ही कारखाने उतने बड़े (Iron and Steel) लोहे के लहे को बना सकते हैं फिर वह लहा हज़ारों ... वर्ष पुराना है। जिस समय 'ईस्ट इंडिया कम्पनी का इस देश पर प्रभुत्याहुनी उस समय भी लोहे का धंधा यहाँ गृह-उद्योग-धंधे ( Cottage Industry :) के रूप में विद्यमान या सर्व प्रथम १८३० में ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक कर्मचारी कर्नल शीथ ने दक्षिण"आर्कट के समीप एक प्राधुनिक ढंग का लोहे का कारखाना स्थापित किया। किन्तु मदरास प्रान्त लोहे के धंधे के लिए उपयुक्त क्षेत्र नहीं था। इस कारण यह प्रयत्न असफल रहा। । प्रारम्भिक प्रयासों के असफल हो जाने के उपरान्त प्रथम सफल प्रयत्न बंगाल में झरिया के कोयले की खानों के समीप हुना। यह • कारखाना प्रा. भू०-६४ V .