. आधिक भूगोल किन्तु १९३६ में युद्ध छिड़. जाने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय. समझौता नहीं चले सैका । उसी समय भारत का शक्कर का धंधा ऐसी-तेजी से बढ़ा कि, भारत में आवश्यकता से अधिक शक्कर उत्पन्न होने लगी। अतएव भारत को ब्रिटेन को शकर भेजने की अनुमति मिल गई । जब जापान से भी युद्ध छिड़ गया और जावा और फिलीपाइन्स से शक्कर मिलना बंद हो गई तो ब्रिटिश साम्राज्य में केवल भारत ही शक्कर उत्पन्न करने वाला रह गया। अस्तु भारत को ब्रिटिश साम्राज्य तथा ईरान और इराक को भी शक्कर भेजनी पड़ी । भारतवर्ष में शक्कर का बाज़ार बहुत परिवर्तनशील है। यदि · शक्कर का मूल्य बढ़ जाता है तो माँग कम हो जाती, निधन व्यक्ति उसका खाना छोड़ देते हैं और यदि मूल्य गिर जाता है तो माँग बेहद बढ़ जाती है । दियासलाई एक अत्यन्त दैनिक आवश्यकता को वस्तु है । दियासलाई के लिए लकड़ो सस्ते मजदूर और रसायनिक पदार्थ दियासलाई तथा बाजार की आवश्यकता होती है। भारतवर्ष में का धंधा मज़दूरी बहुत सस्ती है और देश में ही विस्तृत खपत ( Match का क्षेत्र है। किन्तुं दियासलाई बनाने के लिए उपयुक्त Industry ) लकड़ी का. यहाँ अभाव है । यद्यपि भारतवर्ष में वे वृक्ष पाये जाते हैं जिनकी लकड़ी दियासलाई बनाने के लिए उपयुक्त है किन्तु यह वन बिखरे हुये हैं तथा लकड़ी यथेष्ट मात्रा में नहीं मिलती। टैरिफ बोर्ड ने एक ग्रोस दियासलाई की लागत " व्यय का जो अनुमान लगाया है वह इस प्रकार है। मजदूर ५ पाना, लकड़ी ३ श्राना, रसायनिक पदार्थ १ श्राना, अत्य व्यय ५ आना । इससे स्पष्ट हो जाता है कि लागत व्यय मजदूरी का अंश सबसे महत्वपूर्ण है । मजदूरी के उपरान्त . लकड़ी पर ही सबसे अधिक व्यय होता है। कलकत्ता और बम्बई दियासलाई के कारखानों के दो मुख्य केन्द्र हैं। कातकचे के कारखानों में अधिकतर भारतीय लकड़ी काम में लाई जाती है। दियासलाई के उपयुक्त भारतीय लकड़ी अधिकतर सुन्दरवन तथा अंडमन द्वाप से आती है | कलकत्ते के कारखानों में जेनवा नामक लकड़ी का बहुत उपयोग होता है। सुन्दरवन में जेनवा के बहुत से बड़े जंगल हैं। ज़ेनवा के अतिरिक्त पपिता, धूपु दिदू, और, बकोता की लकड़ी का उपयोग भी होता है। यह अंडमन द्वीप से श्राती है । बम्बई के अधिकतर कारखानों में ऐसपेन ( Aspen) लकड़ी का उपयोग होता है । यह.लकड़ी फिनलैंड तथा रूस से मँगाई जाती है । किन्तु कुंछ दियासलाई के कारखाने गुजरात बम्बई के अन्य भागों तथा संयुक्तप्रान्त ber
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