पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२: मीरनुमला का कृष फमान और भैड का भविषार मिशठे ही मीरहमका ने फिर दिल्ली में ठहरना ठीनही सममा। उसने अपने और प्रौरजेवरे पित अमीरों की एक गुप्त समा की और उसमें मपिम्प श्रेस पोजनाएँ मार र नपा अपने गुम प्रादेशो की पूर्ति प्रावर अपने पुत्र अमीरों तक उँच नीप से सारपान कर वित्री से तुरन्त र दोश दिया। उसने एग क्ष करसे हुए बस्द-से परद पिजी से होने तपा मोरावर निहोने की। मीरमहा एक मैंमा हुमा सिपाही और दूरदशी गनीतिश था। पास्तव में उसका मूल वोरस, इस भारी सैना से प्रोरसलाम पहुँचाना था । परन्तु एक तो उसका परिवार रिखी में दाग के प्रपिपर में था, दूसरे उसके साप पापा ने दो सिपहसाबार मोर उमपण जगारिए पे उन पर उसके मन मेव प्रधनमा और नपाटन पर अपना पक्ष प्रमिपाय प्रारपरना ही चादवा पा-इथिए उसे प्रत्येक भाव में पशुव सापपानी की प्रामसभा पी। पर अपने प्रत्येक माचरा से पही मनपरना चार या पाकि पपेक मूरप पर बादशाह श्री प्राशन पालन करना चाहता है। पाना उमगू गरेप मा पा लिया और पासम्मर निष्ट हीरो और उसके पद में अपनी इटनीति पतप मम समय माने पर उठाने में किसी पापा अपने बीच न साने है। पद मिल में मुगल साम्प और गोहरण दया बीमापुर के दोनों पम्पो सीमाएँ सा निर्धारित हो यो पी । म्या पदी से भारी पार और कारण प्रदेश पारित विमानमर