पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

] १२६ हीरापाई कमरा छोय था मिन एफियाना देय से सपा, पर्य पर श्रीमती पनी पहीन विधेये, सम्मो और मामों पर मौतसिवाय पयोगी मालाएँ सीईभी तीन-चार बारा प्रमूतों में सुगन्धित मोमबधियाँ बल दी थी। उस कमरे में घर मानिन्ध सुन्दरी माता मन्नर पर प्रससाई पड़ी अपनी ओमन उगलियों से पार परे एक दिशावारीको रही थी। भमतिम मुम्हरी बिलकुद नपोदा गता थी। एक दोही-सासी पोशाक प्रय-मन उसस पर पड़ी थी। पापोशाइनी बारीक पी कि उसमें बमपर उसन अंग पारपार साफ रिचाई पापा। पापोर मीन दाके की मनमन की थी। उस रंग पपपि सफेर पा पर उस पम्पनी के अंग मा नबीर के पत्ते के समान स पन-इन कर बोक्स पा रहा पा, उसे बह पोशाक मी चम्पमापी-सही पी। एक मसाव की बाकर उस पर वे पीधी। और एक महीन रेशमी दबारकर वो कमर में लिप्य हुमा था। उसके सुनको मुपर नंगे पोष उस सीन कालीन पर वाणे गुहार जोर से पीस पारो। उनका सोन्पर्ष ग्रया और एपदन नियनी । उत्ती चमीती भोर पराधी उसके बादी के समान पमते मापे पर अठसहि र पी पी। उस गरीर पर गुमर मोती और और अस्पन्न सहपरीगरी से बनाए पर थे। उस माल प्रसी, सीडी और ध्यती दी। संक्षेप में यह बासना मोबीवी मामती विमी। रिपारों पर मनमें उठते ही उसका पाए