पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१४२

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दीपपई (मेरे सिर "मारे लिए ", मैं शान मे मनिष पन र मानद पर बैठना चाहती और पापाप परमारे पाम से भामागे तो मैं भाप पमाहगी। महसी और मुम पर गारगो । मेरे पाहबारे, मैं महमेशा सपना रेलवीयवी है।" "वपना रेवती पती" "हुनर" "माझी वामू, पोरंगमा गम्भीर हो गया। उसमे धोमे प्रस्ट सर में 40- प्रेम और सपना ही हमारी दुनिया है।" "और पापी दुनिया कुपन रायप, वत्ती मोगों से पुरपुर- धपुर पापना, छ सोचना, प्राधमान श्री मोर देखना, सी पैसएसना, कमी न ईसना, न बोलना-पही न पापी पनिपा पाए मैं मापसे नही बोसवी-1 भौगयेव ने पती भाषाब से कहा-"पीय पारीहीय-" परम्त होगाई ने एकदम नायबोडरमा- “मैं तो मैं प्रारधील दुनिया में भाग ला नो । मुझे सपा पसन्द मीमापारगार होना होगा।" औरम मे ठोषित होकर मा "ठहरवेपर", उसमे रस्सम दोबादी रस्तरस्ता मा पामिर tीराबाई मेणारा पिपाया शराबा सामाई पोर उसे सामने रसारपसी यहीराबाई मे मर रमा-"पोमो " “पारमारती हो बान्। मही, यह बारिपाठ "वाहियाच वाव मता-पीनो।" "ठर अन् । "पीमा-पीना-पीनो पारे, उसने मोरंग बद्ध में हर