पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१५६

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शिर और रमपी सेवा उन मन पता को बाहिरपना बा। गों से बरपा मालमय में पूरा कर मुग-मुररी पायपमा में माता । यही ततध बीवन, सी उसका प्रतिय, बही उतर पुस्पा पार पपरि उसमे भी रिमी और प्रागरे सबसपा को सुन रखा था और यक्षिप्सा प्रम माइयो अपेक्षा उसमें कम म बी, पर पर उपना बुमिमान न पा बिना एक गबमार होना पाहिए इसलिए बहाण, राधा और पोरगर सोहोर मोरे सपने रेल रोपे मोरपडेनोपजनीतिवाने-मामे बुन रहे थे, मुपद बस्य विपर-राय और सौमर में दर उवयापा। मुगाही से गिभर वारियों हो गई । ये दुए एपिनों पर वमाम मुसाहित और वास-साप्त प्रमौर पेठे पे, गावापा मुगक्षय एक पापी पर सवार पा । पापियो पर सुने होरेसे थे। सारे हायों में पाया। बगल में रिपर प्रतिमाम पास से बारिया या पाऔर मह के चारों ओर भगन पास जगा दिया गया था, बिटम बाहर मामेबाने हि एकही यस्ता था। बाल पार परिबारे प्रतने पर सिपाही मासे और पढे लिए मुस्वा सो मे, मगर ये शेर प्रविधर नही कर सकते पे म और पीले बानि पहुंचा सवा पा। बागपत बसी। प्रागे-मागे बोरे मीमधर भरने मस पे, उनके मानक विशाल सीम रेस मप होता था। उन पर मोरे गम को पुए पे बोकि माम्मस से उन पा रहे प, भैसे हममग एक सौ मे, इन पर एक-एक मारमी मेवा दिए गह में पहुँचते ही ग्राहमारे हार मिसीलिमार बारामती मे बोगर और रोमी है। पारपाये मेणी में पिता दरबने श्री प्रान। और पेर बमले एस बोड़ा