पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१७१

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प्रातमपीर मकरेती-मिरठीपाती र अपमे-अपने श्रम में सम यी वी" भारी जीनतम् नि मातमानी शाके से अपना सर्भगात सपेरे पुरी मीठी मकियों से यी पी। सदियों पुरचाप मोरहत लिए पपरसर पाड़ी मरिच काही पी, गरीबी किसी ऐशम की मामी उसे बगा। मधमा प्रपा और रेशमबमिों में शाहमारी अपनी पोरीनगोरी पाहायो बगा मैप भरियों की सारी उपमानो कोथरर यो दी। इसी समय शारदीपनी विभातीसी नदी नाविध ने पार रे मा-"भगदए ममी बयारी सीtm धारपदी नरेनों में भावाब मा। धीरे-धीरे प्रति बोशी, माईसी, मास मालती उठी। नदियों ने मोसमास देप। वादीबीनबर काममैसी मारिए पर पड़ी स्पोरिरों में सपा गए-"मनामा पर, पुरेत, माद बदरपो, किठी प्रेमी रेशी, मस्सिकनही उकाई पाती, महारी पर, पाय घेरे म निमगी।" नादिय ने सैबाबी, मा-"aga होसी र, मल, भर उठिए और पीनी युनिया सका तीथिए ।" "को प्रमेणे अपना ही वह सोते है।" परत मादिरामोसाय मे समय नहीं मिला। मालों में स्पर-से-अपर समई मारती यो दिया, ममा मानी, हमापा, बारी से, पक्षिा गांवार पती एक-एकमोचिनी धीरो में, एक वेद कर एक प्रतिमार, कारियों को प्रविरिवों विपिप शरमाई मोर मायाप्रेस से सपोररने गी। इपने में मानमेवानियों मास मा गगरिकों ने मानद मारी और मापनेतालियों मानापने समी। अब एसएस पर ठोषि गी। सबने दी मादिप ग्रेवा वो उसे में "मीमा, म यहाँस्यो भाई