पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१७२

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मीनतनिणे दूसरी मे नवरे से पारितोको परी, लीग प्रारपदही में भा मिली तीसरी मेरा-"परम, उस पोरते में मिस्त्री की बार बोरेलवेदी नवी पोपी ने कहा-"दरमोरे समाप सात में पाने में हो पर बिना नाव देले पैन नही पड़ा।" मौसी नेपा-"मा, ये मारे मालेगुम्दे वो गव दा m घडी मे 40-'यो पनी यो मरवीरो, उनके मि ने पालाए, ११अपना-अपना चौक शारीरे पास मुनी और सिकाउने मा-"पदा हम गुस्त परेंगे।" यारवादी उठ बदी। मम पापी म परिन, अनिषों, पानिय, मुगनिपो, बोधनियों घोर साबासरा पीपीयेपही। णावादी प्रवास मातरम्माम में पहुं। मूषा दम्माम ठपाए नममेरापना हुमा पा, दीवारों पर पेगनदान पे पिन रानी प्रावी पी, पूर नहीं भावी पी। नाम्माम गर्मियों में उपग और सदियों में गर्म रखा। पीच में एक रोगमा विसमें सुपम्बित बन मरा था, उसमें गुहार वाध रहे थे। रिमों मे शाहमादी भी पाया उतारी। मारत में नोन्मोड़ परने और गानादी रेप बह-शरने लगी। विव ठन्दर्य पो माना औरम बसेरमे तमा। पता महीर से बा गुशार पा से सपास रोग वा पहा। वैगम्पिों से रोगी पोरनी पड़ी। बाँ पे अप्रतिम सौन्दर्य प्रतिमाएँ सि-हारी भी परवानगो विवेकमहरुमान एकही रनमो के माधर, निमें मरे निर्मल बात में मीश्री भैवी हुई पम्पीनरी और सुपुती दरियों