पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२२१

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1 मागीर "हमाचार तारेने गयी, परो।" "मोर, तो उसे पर ही रना पड़ेगा, सेर माप अपने साथी हे प्रारए-याँ पाप हम भी मिलता है। पर या मूर्य मा मासपी। ना दो पता पेरायी लिए भारगा ही नही" मेवा ने उसे पम्पबार दिया और दो पता उसे और रेर पा-" के लिए हम बस दुजया दो। तयप पासा बावरा हो गया। पवान टेंर में तोह पर एक भोर पहा पा और इन पोरोपियनो मे उगम उस गदी कोठरी में-पिसे यह अमीरोठारने कमरा बसा या पा- राना। श्रम मिज बागमणिशा और मेनुघ या। पापी मारी पगडीषि और मम्बा सारा अंग पर रामे हुए पा । रोपी भी ना पसर पापही देर परपी पारी में पारा - फिर उसने एक मारोगी बिताई और हामीनान से मार कल्या महा-माता पर ठोकहो बारगा। पर नीम के बाद ही वाहे असर से पीसगने बगे। रेविमे पाय र रम से पाया कि प्रबार, राममेहा-सपीमारी निमत सी मिना मुप हमारीक-ठीक हो पायगा। माचार बारा विरमगा। शाम गप प्रातर ने उसके सारक पर पर लिए और सिपाहियो मे पुभर कर मापारमा कालोग अपना-अपना सामान देत हमसे और ऐशियार हो रहन योगेपियन यात्रियों मे गत पाने माम किया। पाम्नु प्रमी प्राची व मी नहीं हुई पीकि रोगी मर गपा। अब वो सितापाय। सीएमी एक ठरे कारवाम्मे सये और पारिन निकलने से प्रपम दीवारे मेरिनामोहरपलबए।