पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२४६

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पमाहान र पाग ने अब अपने संबर को समा। उसने परम्स तोपों में सामने माने और बसूधियों सपा फरगियों को भागे भारताने का मादेश दिपा, परन्तु मम समम पुरु पुष था और उसकी सारी सेना की वरखीच विगत दुधी पी। सिपाही निकर उनपर ठठे उपरही माग से। परन्तु रारा ने हिम्मत नहीं हारी। बावड़ी बहादुरी से भागे बदता गया। उसने सपा संत को सेना को भागे बदने कोका-हो तो भाग बरसा दी थी, की गोलियाँ मूने गत रही थी, और वीरों से भासमान पय बामहा था, परन्तु दाग हिम्मत पर अपने पीर साथियों के साप भागे बदवा ही गया। उसने कहा- "यादुर्गे, रमन तो धीन को" और या अपने पीये साम औरही तोपों बाबा पहुँचा। अन्त में उसने वोपों पर सपा रसिया भोर बरदती रमन की प्रेम में प्रत पड़ा और ये पारों तपा बसूधियों को प्रटवा मारता पोरसायको सामने वा मरा सिर पर रेकार भोरसव परयया नी। उसमे अपने उस्ताद ऐनमौर और दूसरे सेनापतियों को ना ना रेम उस पर बगत से प्राणमय करने की प्राडा दी। प्रबहापापई, यसबार और पपलमे खगे। मरने वालों की चीख-पुपर, मानव परिपाइना, पायो पापना, गगुपार, गर्मी मे मिहार पनमार पुरम मानक रूप पारबम लिया। राम से अपने हाथी पर स्य निरम्पर म से यारा परफे सेनापतिको पदावा रेया था। पुरमन पीछे वा बारा पा और सागर सगरे। परन्तरत पुर में मी एक बेतरतीबी पी ।सिरे ही सिपाहीर पावे पे बो भागे होते । पपि धीरंदाज बड़ी फवा से वीरको थे, और पासमान तीरों से परा मा पा परन्तु मे वीर सबमर्प बाते ये, याबाबत वीरों में एक वीर रानुभो पावर पाप में सर्व वने वीर बरसाए कि उपदराबादी रोगको