पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२४७

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प्रासमगार पौरपद दूर नहीबार पर राषी पर बैठा अपने लोगों ने सत्सादित कर रखा था। पर इस च मी परिणाम नहीं हो रा पा, योग माग रोये। घरे पास सिसले सो सिपाही बचे थे। पर उसने निर्भय होकर प्रत्येक वार का नाम लेकर पुषग- "मारनों पर पर भरोसा करो, सन पो से गृठ दूर है-मरोमा प्रवर हासिल करा," इसके बाद उसमे पाशदीप दापी के 4 में धीर दीपाय और ये स्वर से प्रेम उठा किया पो ही शान दूंगा पा स्वासित रहेगा। बाग मे पाय औरंगज पर कापा मारा बाम । पाखा में पर उनके लिए ग्राम प्रसर पा) पर भूमि पपती और सरसावर पी। शासबार मेलों और मैरानों में गिरोह पकि तीर परसा रोपे और उनके पारग बी से दाग बद नही पाहा था। उसकी सेना मी पहिरनही थी। पास्वर में मौरंगलामे योम्प नो गया था। परन्तु दुर्भाग्य पाराशापण। उसने ठोपारा पीस को मुखाम भ प्रबतर रेशिपा पाप और सेना को पपस्थित र सिमा बाम । इसलिए उसने सेना ने की प्रामा 0। उसकी बापाशी उतरे तनाव प्रबारद बन गई। निसमा में मर उप वैनिक एकाएकाने प्राश भुनही बाप रोषपर प्रापर्ष से परस्सर देखने में और विषय पर मग मारी माया गया। मुराद का संकट राणादिर से और पर मारपण मने का राशर पापा, मी उम्मे ऐसा कि सेना म पात्र में मारी सबस मची प्रमी पाच दोष मी म पाया था कि एक मुताधि हामवा