पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२६९

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मासमीर "फिरम, औरते, सो, दायरा बान और प्रगद हो, कष सामान्य "मरौप्रभी तैर, ऐ, तुम रोते हो" पुरा शापारे मे प्रास पोड़ी। उसने कहा-“दादा पान श्री पाप से एक प्रारम्।" पसी भार" "परम" उसमे नौरंगाब में दिया और पीछे र गया।" "हुबूर का मिचाया "ना- बमोदी तोर-चोर से ऐस मोरंग में पारणात पर सिमी और 40-"प्रार समी पम पारी मासे गौर ने प्रेस गए . उपने भास्तीन । एक काय निकास रा-'यह मानो और ममी बार मागरे के मोतवाहनचालो और गरमाम दावों पर इस्लेव परपठा। बगैर मारे बस्ती पमित या पर परवान शहर से बार मापने पाएँ म पाने पाएँ । बामो मुरम्मर मुस्तान मे पुपाप काग लिया और सलाम परोपला या। प्रब उठने एवारतकी मोर पस बिपा। सतमे कहा- 'एवार को, म म पर तरसे पाय मोसिम का मार्य प्रम गौपना बादवा" "गुलाम कोपोखिमतरी पपी उसेगा मान देकर भी गरेमा । एतबार तो मेरा। पौरग मे का-"हमें तुमसे रसी की उम्मीरममाम मिा ग्वालदार हो- परत पासा पानापम मरसतरा में पमे में प्रेमीफ न है। लेकिन प्रचत् भारमि पर निवास से और नार रतो बारा प्रारमी या पैगाम बिजी विस्म भ भर म पिये पार "