पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२८१

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प्रासमगीर हो र बाहिर करते पते दो-बम बानते ये हर बेबुनियाद पाते।माई और किस कदर हमसे मुरमतरते है और हमारी बत करते हैं। क्या तुम नही रेलसे किपा ही बादशाह मानो है। फिर तुम वो उनसे बहते हो। पर, हम नहीं चाहते कि तुम मारे सुप्रामवात में हारिवहो।" परम् शाहनवाब ने शाश्वारा गुस्से की परवा न भी। पर प्रवाही गपा 'हजरत, ये सब प्रवी मीठी-मीठी पावें और पापद्धतियाँ दगामी निशानी है। प्रापको मुनासिव विमापरे और परम्न मुराद मे स्वोरो पर बस गरमा-"शाहनवाय, म पारशामिभिरा देने व मरो। ममी तुमने बबीरे- भाबम नहीं बना दिया है। अपनव मामलाव में मभिरार लिए हमारे पास पर उमसे म्पारा बाबा मशीर मामा उसने घोरको एक सगाई। पर शाहनवाब मे फिर उसया रोगार और पोरकी रात समरा-"दुगर, उठ पाप में मत पाइए।" मगर मुपद में अपनी तलवार रिजारमा-"बा मेरी बगल में मुम किसी भ गम नही ।" उसमे पोरदाय । शाहनवाब मे मी मरपर अपने मोसे प्रारमी महिए और इपिपार पाँच मासिक पीवर पडा। मुरार पोड़े पर सवार बीरे धीरे अमीरों से पिय गाया- हामने से शाम पो पर उपर माता मिता । परापार ईमानदार सरदार वा। उसने शाही अपव-प्रयरे के अनुसार एक पोर होने अपेक्षा मागे पदार मुराद के माने गत पा सी और मुगद के चेहरे पर मय पर गरमा-"माप पर रहे बिर" "मवाबपोशी के लिए चाहे"