पृष्ठ:आलमगीर.djvu/४१

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२२ माहमगीर सदा यही सोमा करता था कि उसा माग्प सदा पागा और संसार की कोई प्रापचि उस पर पानी नहीं सकी। उसे पा भी विपास पा बिप्रत्येक म्पति उमे प्रेम और पावर कीररि से देखता १और पा सभ्र पार्य पात्र है। पर मापन और मानन्द में मस्त गने वाला पीप था। पास्तव में या बहुत बिनोदी समाषा प्रादमी पा । बहुमा का बिनोद में मर्यादा से भागे बदमाता मा । पेशेवर मसलरे सा उसे धेरे रहते, और एक न एक पुराना दिसताही गवा पेसोग को मुसाहिब पहाते पे-बहुत मानीले और बहुम्म बन पान र प्रवि बिन ररवार में भाते भो प्रायः कमीने, नुशामदी और बेबाक हासे पे और प्रायः दाग के सामुन्न मूसंतापू दास्प रिमा परते । बिसे देतपर या महान् मुगल-चामाम्य का पमो-भार सुरों की माँ ति मर बनाकर स दिया करता पा । बना इनका झर विनोद या होता पा शिपा सिपाही पा दूसरा पति मौकरी की प्राण से शाहगापा के दरबार में पावा वो उसे फुरक्षा का पेसोग इस पात पर गबीर लेते किपाबाम-परों पल पशुभों की मावि साहमारा के सामने पर पाए और परमादेगारा माफ्ता मारा इनके पकर में प्रापर ऐठा रवा वो गाहमारा पता था। पापा मसबारेमोग पिसी अपरिचित सिगदी या पर दिनी प्रादमी पबनावे, प्रौर पर उनमें से पता किमग मारी स्म। तुममा मारी म हो गया है, इसाब न गे तो मर जानोगे। यह देवारा पग उठता-ब ये मतलरे से सलाह देवेभावर में मनरा रिया बाप और पिर पा बेफ एको पतन में मप पियार के परदिवा पाता। पर पार्वन यापारा के सामने बाया बाण और साना उपारमे पर