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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/६०

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महान् प्राम पराभव को पहुंदुभपा) उस ममता युग में दिल्ली और प्रागय पृषी मी विभूतियों के केन्द्र दम है। पारगम-पास सले परिवार पान बने जो वाम्मोहिनी दूवान तक प्रत्येक पर प्रवामारप मुखोपयोगी कोदालों और पालो गरपम ना हुमा रा! प्रामोद-प्रमाद और मानन्द रिशासकी भागएँ रोकन्येक पापा करती थी। पाकि उस समय मुगल वादगार र दरपर ऐशर्य और शानचीत में यूपी भर में प्रतिवीर वा। इस बादशाहगमधल में गोशारण से गबनी और पार तर बोई हमार मोल से भी प्रपिक लम्बाई प्रदेश और उस समय तीन महीमे का मार्गा-मुगर गणारा सामान रेमा मा । उस घमामे में दो पापल और गाँव देश में पैदा होते पे-मिमा निम्मो से पार से पा रेशम, और नील मादि यो पहा रिका पर राखे ये वे लरे देशों में पैदा होते ही थे। अगैगरीबोबो में कालीन, सिकन, मतार, कारोबी, परोपी मादि के श्रम और हर प्रभर ती भोर रेशमी पर दो रेरा पर मेंबर बाते में पारियों को सोमेमे बावे -- पावापत बारहवेपे। मुगल साम्प की सबसे बड़ी विशेषता पर भी ना मार मर में भूमपाम पर पा मारवार में पोपता पा को सही सापाता था। अमेरिका सेवामा प्रायर गरे पोरोर में ता पा उसमें से कदमोहरिस्तान से पर बरसे में नहीं पहुंच बामा प्रोर गाव-सा स्पना रे बन्दरगाह से देयन पनवा या, प से रो रेशम पार पडो संशा में सवा पा। परना, बमन पोर नाम उन दिनो मारती बोस्निा पसवा दोन पा। वो मुना बदररोसाह समुद्र नारे पुरमान पान पा, पापवरे को प्रल पाकी