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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/६७

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सुक्ष्मए शाहजहाँ रिती में उन दिनों फीरोंगा पोर या। पेफर सस्तनव की पेन । मुनझमानों के रम्प की पर भारत में परोने का आम किया था। उनमें बहुवा भी मार पूगी। पहुतो भौसिवा उममा वा भासहसंग इनकी बहुर भगत र पे और इनकी पारविणे परत करते है। इन पाद पर नही पी। दिल्ली में इनके गिरोह के, एक की मरमते थे, . बितरमा देबेद पीर बहुत अक्सर होते रे, मोर बसी देव पात पसे । कोटेसोपवे कम लबान नीरसे, बिसे गाहो सुना पेठते। गन्दी फोरा माते पन्ने, पारे पित निवास पुट पाठे, बो भला उसे पत गम्दी-गदी पालियों फिर भी पितषी मबान पी किएनसे नारा प्रकट गरे सुशामद और पापस्नी से इनके गुस्से को कम करते, उसटे पमा मौयते भौर मुदाँगी मौत रेकर पिया भावे । प रामाये पर ही न रोध बाप पोदे सीधे मासिक पाठबार सलाम-क्दगी बिएसनी फटे-पुराने, गमे और पून-मिटी दुपाप-पोव के गप उसके बराबर पा बैठते और उसके दुभबीन र मुद पीने लगते । पर प्रसामी इस्पर उनसे नोवा पा-उतरे पुरा होता था और उसे अपने सिर मारी पी गाव वममता था। उसे बहुत-बहुत बार रेवा, पर और न सय परकर था। भील माँगने में ये ऐसी विद करते