पृष्ठ:आलमगीर.djvu/७३

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प्राप्समगीर "बहॉफ्नार, पहाटी मे वो अपना सब कुछ इमर को सुग रिणा, भय भाप ऐसी पाव क्यों मात ॥ "at प्यारी बेगम, मैंमे भी तो सुगदारे सामिल भारतमा दिया है गैरतमन्द अम्मत सबसे बड़ी पीन समझाये।" "वो बेगम, गापः अस्मत का बहुत लपातt" "हुनर शालीन, मेरी बाते पूरी मुन -" 14 "शाइस्तानी बीबी पागल हो गई है।" पर सुनकर बादशाह एकदम पा गए, पाने सगे-"वा पास्ते पेवा न मो" "वे एस प्रमाम से-आप बुरी-बुरी बाते हो और सारस्ता तव मे मेरे वाविन्द श्रेबुवार कुछ नलारपी।" "महा" पावणा मे सबारी मठ पर राम रखा । "इवर, भर नही कि शारवा तो, हुनर के पुरमनो की कुद दुई करे, इतर नक्दार रो।" बापणारय मय से पीना पड़ गया। उसनेमा-"मा देशभरवा ऊपर। मैने देस हरामी को तीन बारी बावका स्तमा दिगो "मगर रखकी मीसा होगा। उसके बाप तो ने पर पारवी "या म्यादी तो उसके मिगत हुल श्री, फिर भी मुझे प्रोत पम् । पर मैं क्या करोबर मी ही मोदी यौ। मुझे पपुरन पोम ना पड़ा, में या स्वि नरीम कता कि कोई मोख मेरे हुक्म में परेग परे।" "भार! माप पोरगम ने बाद मरकर करा