पृष्ठ:आलमगीर.djvu/७९

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प्रासमगीर गर प्रयाही नबर चार पीनी मोर मतमयमरी मबर से सा। पेगम मे एकरणारे से ठसे उमा दिया कि पायान्त-मत बना रहे । इस पर बारा मुरपाप नीपी गर्दन पिए सहा हो गए। पदणार ने स्नेह, पिता की रिसे उसे बहरा-"तुम भी बहुत मुतफिर मालूम देठे हो, भागिर ऐसी मा बाप" "हुजूर, में भी पनीर मा पाया मर पाया था और उसका प्रेप स्प होगापा। प्रदशा ने प्रश्नसूपक रिस उतकी मार सरका-"ऐये जौनी मिसमे तुइस कदर परेशान पर पता t" " का नमसूर, कयामत साराने मानी है।" "पलोग हमेशा भामत मुनीषत और मनरे सपमे रमा करते हो। मेरे पेटे, ठपरे दिमाग मे सम्सनत प्रथम-पाच देतो मे मकर वो दोसे ही हैं। इतनी गहरी सस्तनत मोदी नहीं पाती। प्रमी व मुरसा बोझा सिपर उठाना तदा परेशान रे नी पहेगा।" पाग ने पदमा सरमे में असमर्थ हो, पराग स्वर में प्रा- "हर त मांजर पर हमेणा शासी बने रहते । रमनी तिर पर पदावे है। मए-नए पुरमन पद पर रहते है। मैं का ही सब ठीक-ठाक र सवाई मगर हुरपी घोषवार्य रुप करने नीदेवी पारगार पुषण सादर इस र उप रे रो। किर गोंने धीमे सर में पा- "तन मेहत के लिए बो में ठीक सममता वा मेरे पारे मेटे, मरबान मैं विराना चाहता चोर दमारे लिए सारा दामोठा हमे मिले-पही मेरी भारत, और थिए म अपमे पब मोर दिया