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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/८३

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१८ प्राशमपीर "चाने दो उन पातों को। ममीर शोग तुमके लोभी है। उनेय में रखो। राग, मैं तुम्हें तार देता हूँ किन अमीरों है मम अपने पच मी ठीकरा। मैं बराबर गिभरत बनता तुम उनहियोगरते गो" दाग मे प्रत पररा-“हुए, मैं बिती की परसा नहीं रता ! मुझे दुसूर मौन वो मैं बता दिन मागी अमीरों में कस तराठी विमा पा सकताtin मारणार मे नर्मी से पानी मेरे मेरे, मा ठीक सगास मही" गम मे पैच ही में पाव भर र प्रा-"र, वो हुदर मे क्या रिउमवादन मेबने र मुम्मित या रही लिया है।" "वो मझोग मोपलो। मैने येतीने दो पासोमने महीनी सरा मे अप उतावली से पा- मेरी एक दल "मीरमहाकुच राखेको पान्दो से सम मेमा बार।" “का पते क्या देगी "एक पो पौरमन वि मामले में दस्तन्दगी "अपका पूख्य " "या बोलतापाव से पार न पप-" “मोर पीवरी "पर अपने स्वेर बाम करे--किसी कलाई में पैक स" या भी कि मीरखुमता परमे पासबों, माझमता या पिते- प्रायरे में बोर बाप-"