पृष्ठ:आलमगीर.djvu/९९

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प्राहमगीर इसके प्रसार हमहुगे मी मममून दिला पाती है। इसी पापी या प्पामा मयूर करती है- 'शुको नाम रियादमारी को रत गुलाम मीरत पर सवात, म तो एकदम नाउम्मीद हो गया था।" "विस प्रमर में" "बाबस्थी पार्क वो पर पायावी की नबरे नाव समनीष पर अब पहिले बेनी नहीं "तो दूसरा मिर्षों पाम को भी ना हो गए, पम्मे नही रो, फिर हम तो तुमसे मुरा।" यापारी ने पाशा बनी विमा घोर दूता मियों ने उसे दुमय मर पर शाबादी भागेदाते हुए कहा-“चरी माफ हो बेगम, गुलाम बहा ।। गा ताबासकी कारस्तानी कुछ गुणामी सकसीर नहीं पोर प्रातो गुलाम या नमम मी मा गो दुसूर मोहन नाचीज पर जुग हाने पनावत करती है या पर मासपोहै। बोनिमार व पारा की उम्मीद रखवाm पागावी निमलिगाम हो । उमने भा-हापावर- मम अपमे विष का मार सुबममा-म उम पर गौर मो- “ता मरना Se शायदा किन पुरे मरनबापत बा भोले मुझे कई सम नहो, और न पसभापर बिलू गश-भिम प्राय में - बागानो पार स्वारी के पाप राने मारेकर सरफ्यम दिया मुझे पसन्द १ ससने वीसय पाखा शारापी भी मार दाण। बारमाही मे दी हुई मौत से उसी मोर पर भा- शार, तो दम इन ऐनो नापसन भामियों के पसि तप पेय भाना पाए