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पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१००

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TERE प्रवत्स्यत्पतिका धीर ते अधोर भई पीग्नोर' चीर भीजै, । सोचनि कुचनि पर लोचन बहत हैं। 'आलम' अंदेसे ऐसे कैसे यहि चैस जीजै, . ऐसे उसाँसन प्रान कैसे के रहत है। कहा करी माई मेरे प्रान मेरे हाथ नाही, प्रान प्राननाथ, 'साथ चल्योई चहत हैं। पल न लगत पल कल ' न परत मुनि, श्राली री ललन कालि चलन : कहत हैं ॥१६॥ सेवा. सावधान देव चरितन चित राखौ, . • कहा भयो कान्ह जु फलेऊ सँग खात है। . 'श्रालमा ए वै हैं जिन वलि डारि पालि मारि, ' रावन के कंध गारि यांधे सिंधु सात हैं। चाँभन अकर नन्द जू के दुख दूरि कर, पतौ पुनि पूरनु पुराने घेई पात हैं। अंब भरें कंचनहिं कीरा फहूं कोरत हैं, कंटक की कोर फहूँ हीरा वेधे ज्ञात हैं ॥१६॥ घरते निकसि घरी एक जो रहन है तो, ' घरी सी भरत नेन ऐसे ए .शयान है। १--पोर नोर दुःप प्रशंस। २-में-योमा २ मग मांग कर। ३-च- नी शांघ ) पनि ।