पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१०१

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बालम केलि - 20 सन लौं पनागत' पनारे से है रहत है, निसि न्यारे नीर नये नारे ज्या निदान है। कैसे कवि 'पालमा सँदेस मधुबन के लै, ... फूटे सर छुटे जल धारा मेरे जान है। जब दुते नदी पार आगे सुनौ नैना मेरे, . __ तय हुत्ते नदी अब समुंद · समान है |१EEn भँवरगीत जाके जोग जुगिया जुगत ही सो जोग जार्ग, भगत संजोग यसि अलख अलेख है। सनक सनन्द सनकादि शिव मुनि जन, ___ सारद नारद के लगत निमेष है। 'बालम' सुफयि प्रानि व्रज नर भेप धयो, - ध्यायत ही लाको ताफे नाही रूपरेख है। निगम से अगम सुगम करि जान्यो तुम, निगुन ब्रह्म सोई सगुन के भेष है ॥२०॥ सोई स्याम सुनहु अगाध के समाधि भावे... सोई स्थान नि जाम मितही समाति है। सोई स्याम पलक लग से स्यामताई ही में, तनमय होत तय फत पछताति है। १- पधारते । ---जुगिया-योगीगर । । समय-नोर ।