पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/११४

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...गोपो विरह • देह करे करता करेजो लीन्हीं चाहति है, .... 1 कागु भई कोहल फगायो करे हम सों ।। २२६ ॥ मैन वस कीनी मनभावन न श्राये याते, . सौवनको आवन' सुने 'अंकुलाति है। 'श्रालमा धयारि बरे विजेनाकी छोजे तर्नु, पिजुरी की कोंदनि'पसोजि भीजि जाति है । यो। चीर चोली'तनुढारीभरै नैन जले, ____थोरे थोरे बादरनि चित मुरझाति है। 'सोरो है है भूमि पियराइ जु रही ही तनु, . : । सीरी होति ज्या ज्यौं ऋतुसी नियराति है।॥२३०॥ , फारी 'धार परी' कारी कारी घटा जुरिआई, तैसई तमाल तोल फारे कारे 'भारे हैं । 'सेखः कहै साखिन' के सिखर सिखर प्रति सिखिन के पुंज सुर-सिखर पुकारे है। 'निरखि , निरखि तेई तरुनि तनेनी होती, जिनके वै निठुर निनोही कंत न्यारे हैं। - यरपि परपि" जात परिष सो पल पल । · · चूंद बूंदः वैरी मानो चिसिख घिसारे हैं ॥२३१॥ ~~ i ..................... १-पारा- अति कालो । २-गायो करै कांच २ किया करती है। ३'तुसीरीशदनातु ।। ४-ताल = ताड़ एन । -सिपिन मोरं । ६--सुरसिखर % Dचे स्वर से । *तनेनी होतीऐट नाती (जड़या होती है)