पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/३३

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आलम-फेलिब पूंचे ते पिछौरी तानि पाछे दे रही है मोहि.. पिय रस में प्यारी पाछे पछताहिगी ॥४०॥ नेक निसि नासिहती. नारि सकेगी सहि, मनसिज सोस' संक 'मेरे संग नासुरी। ऐसी सयानी ऐसे समै कैसे, स्याम जूसों; सारस सी अँखियनि ऐसे भरै आँसुरी। किसले कुसुम सैन 'पालम' संचित सुख, .. सविता-स्तार" समीप सरस निवास री। विसरंगो रोस रिस.सय ही रसिक संग, सुर सो या यन में. सुनेगी नेकुवाँसुरी ॥४१|| मानिनी अनमनी है मौनो.को सो मौन गयो, मानो कहूँ मन गयो तेरे मन मोह सात गरि सो मुरारि बैठे हारी मनुहारि के तू; नारियों निवारि आरि जोरि यांह हि सा। 'पालमा अकेली तू मैं आजु कछु और देखी, :. और सुनी और चालि औरनि की छांद सों। छपाकर छपे छिनु छीन भई छपा छोया, . . छाँडिदै छशीली अब नाही कीयो नाह सौ.॥४२|| ~ ~ सनी प्रसाद चौरसिया (वार्ता) १३:१०, १७ दिसम्बर २०१९ (UTC)mmmmmmmmmmmitr-wintm...mosimirmer १-सोम: शोच । २-सवितासुता यमुना।३-प्रारिहरु। ४--ौह - फपरप्रय शिश। -५-पा: रात्रि 1: ६-छीपा%D घृणातूचक शब्द ।