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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११२

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माड़ोका युद्ध। १०७

मेढ़ा पावैं यहु बाबा जो तौ हम हरद्वार को जायँ ४४
यहुतो कैदी है बिजमाका मांगो और वस्तु कछु भाय॥
जो हम पावैं यहु मेढ़ा ना तुम्हरो योग अकारथ जाय४५
सुनिकै बातैं ये योगिन की झिलमिल मेढ़ा दीन गहाय॥
योगी बोले तब मिलमिल ते याको मानुष देव बनाय ४६
तवजलछिनक्योझिलमिलतापर मानुष भयो लहुरवा भाय॥
चलिकै बाहर भे मढ़ियाते बोल्यो तुरत उदयसिंहराय ४७
मारो दादा यहि योगी को तौ सब काम सिद्ध ह्वैजायँ॥
सुनिकै बातैं ये ऊदन की लौटा तुरत बनाफरराय ४८
मूड़ काटिकै फिरि बाबाको औ मढ़ियामाँ दीन चलाय॥
तीनों चलिमे फिरि तहँनाते औ लश्करमें पहूंचे आय ४९
खबरि सुनाई सब आल्हा को डंका तुरत दीन बजवाय॥
बाजे डंका अहतंका के मारू शब्द रहे हहराय ५०
लैकै फौजै राजाजम्बा पहुँचा समरभूमिमाँ आय॥
बम्बके गोला छूटन लागे धुँवना रहा सरग में छाय ५१
जौने हाथी के गोला लागै मानो गिरा धौरहर आय॥
जौने बछेड़ा के गोला लागै मानो गिरह कबूतर खाय ५२
जौने क्षत्री के गोला लागै यमपुर तुरत देय दिखलाय॥
गोला लागै ज्यहि सँडिया के सो मुँहभरा तुरत गिरिजाय ५३
जौने तम्बू गोला लागे त्यहिकोलिये सरग मड़राय॥
गोली ओली सम बर्षत भई मानो मघा दीन झरिलाय ५४
भाला बलछी खट खट बोलैं डोलैं तीनों तहाँ बयारि॥
कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि कहुँकहुँ देखिपरै तलवारि ५५
तेगा चटकैं बर्दवान के कोता खानी चलैं कटार॥