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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११७

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आल्हखण्ड। ११२

ठाढ़पिरायो नृप जम्बाको पाछे मूड़लीन कटवाय १०२
जहँ रहैं खुपड़ी देशराज की तहँ पर तुरतदीन टँगवाय॥
तब रनबोले वहि समयामें स्याबसितुम्हैंउदयसिंहराय१०१
पूत सुपूते तुम अस होवैं नाही भलो गर्भ गिरिजाय॥
पूत कुपूते ज्यहि घर होवैं जरिजरिमरैंबाप औ माय १०४
पुरिखा रोवैं परे नरकमें नारी मरै जहर को खाय॥
गली गली में भाई रोवैं करहत ज्ञाति परोसी जायँ १०५
पूत सुपूतिनि सिंहिनि माता निर्भय होय पूतको पाय॥
गदही केरे दश बालक भे लादीअधिकअधिकसोजाय १०६
पूत सुपूता एक बंश में पालै जातिपांति को भाय॥
जैसे बिरवा यक चन्दन को बनमाँ देय गंध फैलाय १०७
डाहु बुझान्यो अब जियरे को बैरी डार्यो कल्हू पिराय॥
लैकै खुपरी म्बरि काशी में किरियाकर्मकरो सबजाय १०८
इतना कहिकै रन चुप्पे भे आल्हा तुरत पहूंचे आय॥
आल्हा बोले तहँ ऊदन ते लश्कर कूच देउ करवाय १०९
सुनिकै बातैं ये आल्हा की रहिगे उदयसिंह शिरनाय॥
खम्भ गड़ायो मलयागिरिको पंडित तुरतलीन बुलवाय ११०
भाँवरि घूमी तहँ ऊदन ने आल्हा बोले वचन रिसाय॥
नहिं लैजैहैं यहि मोहबे हम मानो कही उदयसिंहराय १११
जबसुधि करि है पितु अपनेकी मारी स्ववत लहुरवाभाय॥
कन्या बैरी की ज्यहिके घर नाचे मृत्युशीशपरआय ११२
त्यहिते मारौ तुम ऊदन यहि तौ सब काम सिद्ध ह्वैजायँ॥
ऊदन बोले तब आल्हा ते दादा साँची देयँ बताय ११३
हम जो मारैं यहि तिरिया को तौ रजपूती जाय नशाय॥