स्वारथ देही तव नरकेही नेही मरे न पावै चाम॥
सन्मुख जूझै समरभूमि में जावै तुरत हरी के धाम ६४
बड़े प्रतापी जग में जाहिर मनियाँदेव मोहोबे केर॥
तिनके सेवक तेई रक्षक रूपन काह लगावो देर ९५
रूपन बोला तब मलखे ते दादा मानो कही हमार॥
घोड़ करिलिया आल्हा वाला अपने हाथ देउ तलवार
सुनिकै बातैं ये रुपना की मलखे घोड़ दीन सजवाय॥
डाल खड्ग रुपना को दैकै बैठे तुरत बनाफरराय ९७
बेठिकै रुपना फिरि घोड़े पर ऐपनवारी लीन उठाय॥
चारिधरी को अरसा गुजरो नैनागढ़ै पहूँचो जाय ९८
देखिकै बारी दरवानी ने भारी हाँक दीन ललकार॥
कहां ते आयो औ कहँ जैहौ बोलो घोड़े के असवार ९९
सुनिकै बातैं द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार॥
आल्हा ब्याहन को हम आये नामी मोहबे के सरदार १००
खबरि सुनावो नैपाली को फिरि तुम हमैं सुनावो आय॥
ऐपनवारी बारी लायो ताको नेग देव पठवाय १०१
सुनिकै बोलो द्वारपाल फिरि तुम्हरो नेग काह है भाय॥
सोऊ सुनावों महराजा को लादे लिहे घोड़ पर जाय १०२
सुनिकै बातैं द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार॥
चारिधरीभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्त की धार १०३
नेग हमारो यहु प्यारो है देवो पठै स्वई सरदार॥
जाहि पियारो तन होवै ना आवै स्वई शूर अब द्वार १०४
सुनिकै बातैं ये बारी की आरी द्वारपाल ह्वैजाय॥
मनमें सोचै मने बिचारै मनमें बार बार पछिताय १०५
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आल्हखण्ड। १२६
