पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१३१

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आल्हखण्ड। १२६ स्वास्थ देही तव नरकेही नेही मरे न पावै चाम॥ सन्मुख. जूझै समरभूमि में जावे तुरत हरी के धाम ६४ बड़े प्रतापी जग में जाहिर मनियाँदेव मोहोवे केर॥ तिनके सेवक तेई रक्षक रूपन काह लगावो देर ९५ रूपन वोला तब मलखे ते दादा मानो कही हमार॥ घोड़ करिलिया आल्हा वाला अपने हाथ देउ तलवार मुनिक बात ये रुपना की मलखे घोड़ दीन सजवाय।। डाल खड्ग रुपना को देके बैठे तुरत बनाफरराय ६७ बेठिकै रुपना फिरि घोड़े पर ऐपनवारी लीन उठाय॥ चारिधरी को अरसा गुजरो नैनागढ़े पहूँचो जाय ६८ देखिकै बारी दरवानी ने भारी हाँक दीन ललकार ॥ कहां ते आयो औ कहँ जैही बोलो घोड़े के असवार EE मुनिकै वात द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार ॥ आल्हा व्याहन को हम आये नामी मोहवे के सरदार १०० खबरि सुनावो नेपाली को फिरि तुम हमें सुनावो आय॥ ऐपनवारी बारी लायो ताको नेग देव पठवाय १०१ सुनिकै बोलो द्वारपाल फिरि तुम्हरो नेग काह है भाय॥ सोऊ सुनावों महराजा को लादे लिहे घोड़ पर जाय १०२ सुनिक वातै द्वारपाल की रूपन बोला बचन उदार ।। चारिधरीभर चले सिरोही दारे बहै रक्त की धार १०३ नेग हमारो यहु प्यारो है देवो पठे स्वई सरदार। जाहि पियारो तन होवे ना आवै स्वई शूर अब द्वार १०१ मुनिकै बातें ये चारी की आरी द्वारपाल हैजाय । मनमें सोचे मने विचार: मनमें बार बार पछिताय १.१