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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४९

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आल्हखण्ड। १४४

तुम चढ़िआवो अब नावन में देखो नाच यहाँ पर आय॥
कह सगाई हम साँची फिरि तुम सो हाल देयँ बतलाय १९
सुनिकै बातैं आल्हाठाकुर नावन उपर पहूंचे जाय॥
किह्यो इशारा अरिनन्दन ने खेवट दीन्ह्यो नाव चलाय २०
डाटिकै बोल्यो आल्हाठाकुर खेई नाव अबै ना जाय॥
सुनिकैबोल्यो अरिनन्दन फिरि आल्है बार बार समुझाय २१
सोला मिनटन के अर्सा में आवो फेरि यहां पर भाय॥
लहरा नदिया के तानन में बानन सरिस पहूंचैं जायँ २२
सो मन भावे महराजन के जे शिरताजन के समुदाय॥
लहरा नदिया के तानन सों बानन सरिस पर दिखराय २३
इतना कहतै अरिनन्दन के पहुंची नाव किनारे आय॥
उतरी उतरा भा नावनते आल्हा उतरि परे हर्षाय २४
तम्बूलैगे अरिनन्दन तब बन्दन कैकै शीश नवाय॥
द्यावलि नन्दन तहॅ बैठतमे चन्दन सरिस परैं दिखराय २५
कही हकीकति अरिनन्दनतब तुमको कैद कीन हम आय॥
देखैं हम सों बुद्धिमान कोउ मोहबै और परै दिखराय २६
इतना कहिकै अरिनन्दन ने तुरतै कूच दीन करवाय॥
चढ़िकै हाथी आल्हाठाकुर सुन्दरवनै पहूंचे जाय २७
गा हरिकारा नैनागढ़ का राजै खबरि सुनाई जाय॥
ऊटन ढ़ूढ़ें ह्याँ आल्हा को दादा नहीं परें दिखराय २८
आज्ञा लैकै मलखाने की सोनवाँ पास पहुंचे जाय॥
भेद बतायो सब सोनवाँ ने फौजन फेरि पहूंचे आय २९
घोड़ा लैकै बयपारी बनि सुन्दरवने पहुंचे जाय॥
द्वार पहुंचे अरिनन्दन के ऊदन बेंदुल दीन नचाय ३०