पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१५७

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३६ आल्हखएडा १५२ भाँवरि तीसर के परखन विजिया मारी गुर्ज उठाय॥ वार बचाई त्यहि देवाने राजा रंगमहल को जाय ११५ भाँवरि चौथी के परतैखन राजा जादू दीन चलाय॥ जवाँ वन्द भै सब कुँवरन के सबकी नजरबन्द हैजाय ११६ सुनवाँ सोची अपने मनमाँ बैरी हँगा बाप हमार॥ वीर महम्मद की पुरिया को सुनवाबोडिदीनत्यहिवार ११७ भई लड़ाई तहँ जादुनकी सातों भावरि लई कराय॥ माल्हा वाली फिरि पलकी में तुरतै सुनवाँ लीन विठाय ११८ सवैया॥ भूप दुवार चली तलवार भपार बही तहँ शोणित धारा। वीर बली मलखान सुजान तहाँ बहु क्षत्रिनको हनिडारा ।। पूतजुझार महाडशियार लड़े तहँ भीषम केर कुमारा। कौनकहै बघऊदनको रिपुसूदनसों ललिते त्यहि बारा११६ सुन्दखन को अरिनन्दन जो सोऊ आयगयो त्यहि द्वार॥ आठकोसलों चले सिरोही नदिया बही रक्त की धार १२० आगे डोलाहै सुनवाँ को पाछे होय भड़ाभड़ मार ॥ ऊदनमलखे की मारुन में जूझे बड़े बड़े सरदार १२१ आल्हा वधुवामे नैनागद जोगा भवगा बँधे मलखान ।। कूच करायो बघऊदन ने लश्कर प्रागराजनियरान१२२ ऊदन चोले तब सुनवाँ ते भौजी मानों कहीं हमार ॥ दादा बांधेगे नैनागढ़ कैसी युक्तिकरी यहिबार १२३ मुनिक बातें बघऊदन की सुनवाँ युक्ति कही समुझाय सम्मत करिके दूनों चलिमे नैनागदै पहूंचे प्राय १२४ पुइपा मालिनि के घर के सुनवाँ सहित लहरवा भाय॥