भाँवरि तीसरि के परतैखन बिजिया मारी गुर्ज उठाय॥
वार बचाई त्यहि देबाने राजा रंगमहल को जाय ११५
भाँवरि चौथी के परतैखन राजा जादू दीन चलाय॥
जवाँ वन्द भै सब कुँवरन के सबकी नजरबन्द ह्वैजाय ११६
सुनवाँ सोची अपने मनमाँ बैरी ह्वैगा बाप हमार॥
बीर महम्मद की पुरिया को सुनवाँछोंडिदीनत्यहिबार ११७
भई लड़ाई तहँ जादुनकी सातों भावरि लई कराय॥
आल्हा वाली फिरि पलकी में तुरतै सुनवाँ लीन बिठाय ११८
सवैया॥
भूप दुवार चली तलवार अपार बही तहँ शोणित धारा।
वीर बली मलखान सुजान तहाँ बहु क्षत्रिनको हनिडारा॥
पूतजुझार महाहुशियार लड़ै तहँ भीषम केर कुमारा।
कौनकहै बघऊदनको रिपुसूदनसों ललिते त्यहि बारा ११९
सुन्दरवन को अरिनन्दन जो सोऊ आयगयो त्यहि द्वार॥
आठकोसलों चले सिरोही नदिया बही रक्त की धार १२०
आगे डोलाहै सुनवाँ को पाछे होय भड़ाभड़ मार॥
ऊदनमलखे की मारुन में जूझे बड़े बड़े सरदार १२१
आल्हा बँधुवामे नैनागढ़ जोगा भवगा बँधे मलखान॥
कूच करायो बघऊदन ने लश्कर प्रागराजनियरान १२२
ऊदन बोले तब सुनवाँ ते भौजी मानों कहीं हमार॥
दादा बांधेगे नैनागढ़ कैसी युक्तिकरी यहिबार १२३
सुनिकै बातैं बघऊदन की सुनवाँ युक्ति कही समुझाय॥
सम्मत करिकै दूनों चलिमे नैनागढ़ै पहूंचे आय १२४
पुहपा मालिनि के घर बैठे सुनवाँ सहित लहुरवा भाय॥